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India Daily

फांसी से पहले भावुक हो गए थे क्रांतिकारी 'बिस्मिल', मां ने कहा था 'मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहादुर है'

Republic Day 2024:भारत की आजादी से लेकर देश के संविधान लागू होने के सफर में न जाने कितने वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देश के स्वतंत्रता युद्ध में दी. ऐसे ही एक वीर क्रांतिकारी थे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल. पढ़िए शहादत से पहले जेल में मिलने आईं मां और उनके बीच हुई वार्ता की गमगीन करने वाली कहानी.

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Edited By: Shubhank Agnihotri
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हाइलाइट्स

  • जेल में मां से हुई मुलाकात 
  • यह आंसू मौत के डर से नहीं
  • गोरों को देश से बाहर था खदेड़ना 

Republic Day 2024: देश इस साल 26 जनवरी को अपना 75वां गणतंत्र दिवस बनाएगा. गणतंत्र यानी लोगों का तंत्र जो संवैधानिक तरीके से संचालित होता है. वैसे देश को अंग्रजों से आजादी तो 1947 में मिल गई लेकिन सही अर्थों में देश के लोगों को अधिकार और स्वतंत्रता संविधान लागू होने के बाद ही मिला. देश का यह संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. आजादी से खुद के संविधान तक के सफर में न जाने कितने वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देश के स्वतंत्रता युद्ध में दी. ऐसे ही एक वीर क्रांतिकारी थे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्में और काकारी कांड के सबसे बड़े नायक राम प्रसाद बिस्मिल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वहीं, देशप्रेम तो उनके रग-रग में था. आज हम इनकी ही एक कहानी आपको बताने जा रहे हैं. 

गोरों को देश से बाहर था खदेड़ना 

बिस्मिल की गोरखपुर में एक अलग ही पहचान है. अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन यहां बिताए थे. चौराचौरी कांड के बाद गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया. इस कारण पूरे देश में निराशा का भाव पैदा हो गया. लोगों का कांग्रेस के आजादी के अहिंसक प्रयासों से मोहभंग हो गया. इसके लिए नवयुवकों की क्रांतिकारी पार्टी का गठन किया गया. चंद्रेशेखर आजाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन हुआ. इसका काम गोरों को इस देश से बाहर खदेड़ना था. 

साथियों के साथ सुनाई गई फांसी की सजा 

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में धन कहां से आए? इसी के जवाब में उन्होंने नौ अगस्त 1925 को अपने साथियों के साथ एक ऑपरेशन चलाया. इन लोगों ने काकोरी में ट्रेन से ले जाया जा रहा सरकारी खजाना लूटा. खजाना लूटने के कुछ समय बाद ही 26 सितंबर 1925 को वे पकड़ लिए गए. इस दौरान उन्हें लखनऊ की सेंट्रल जेल की 11 नंबर की बैरक में उन्हें रखा गया. इस मामले की सुनवाई के बाद उन्हें और उनके साथी अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह के साथ उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई. 

जेल में मां से हुई मुलाकात 

शहादत से पहले उनकी मां मूलरानी अपने बेटे से मिलने आईं. बिस्मिल उन्हें अपनी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत मानते थे. मुलाकात के दौरान उन्होंने बिस्मिल की आंखों में आंसू देखे. अपने बेटे की शहादत के बारे में जानते हुए भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया. उनसे मुलाकात के दौरान मां ने कहा कि मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बड़ा बहादुर है. जिसके नाम से अंग्रेज सरकार थर-थर कांपती है. मुझे नहीं मालूम कि वह अपनी मौत से इतना डरता है? 

यह आंसू मौत के डर से नहीं

उनकी मां ने पूछा कि जब तुम्हें फांसी पर ही चढ़ना था तो तूने क्रांति की राह चुनी ही क्यों? सब जानते हुए भी तूने यह राह चुनी... तुम्हें यह नहीं चुनना चाहिए था. इसका जवाब देते हुए बिस्मिल ने कहा कि मां यह आंसू मौत के डर से नहीं बल्कि तुमसे बिछड़ने के गम में हैं.