Maoist Crisis: सीपीआई (माओवादी) को बुधवार को बड़ा झटका लगा जब छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में संगठन के महासचिव बसवराजू मारे गए. उनकी मौत ने इस प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन को दशकों में पहली बार नेतृत्वविहीन कर दिया है. यह घटना उस समय घटी है जब सुरक्षा बल माओवादी गढ़ों में लगातार दबाव बना रहे हैं.
संगठन में खाली हुई शीर्ष कुर्सी
बता दें कि, 70 वर्षीय बसवराजू की मौत के बाद केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो जैसे शीर्ष नेतृत्व संस्थानों में नेतृत्व का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. अब सबकी निगाहें नए महासचिव की नियुक्ति पर टिकी हैं. दो वरिष्ठ नेता इस रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं. जैसे- मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ 'सोनू' और थिप्पीरी तिरुपति उर्फ 'देवजी' के नाम आगे हैं.
नेतृत्व की दौड़ में दो दावेदार
वहीं 69 वर्षीय वेणुगोपाल तेलंगाना के ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और बीकॉम ग्रैजुएट हैं. वह लंबे समय तक पार्टी के प्रवक्ता और रणनीतिकार रहे हैं. दूसरी ओर, 60 वर्षीय तिरुपति मडिगा अनुसूचित जाति समुदाय से हैं और पार्टी के केंद्रीय सैन्य आयोग का हिस्सा हैं.
जातिगत संतुलन बना चुनौती
तेलंगाना के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ''पार्टी में नेतृत्व के स्तर पर जातीय संतुलन को लेकर अंदरूनी असंतोष बढ़ रहा था. अब यह देखना होगा कि पार्टी तिरुपति जैसे प्रतिनिधित्व वाले चेहरे को चुनती है या अनुभवी वेणुगोपाल को.'' वहीं कुछ अन्य संभावित नामों में कादरी सत्यनारायण रेड्डी और मल्ला राजी रेड्डी शामिल हैं, लेकिन या तो उनका असर कम है या वे पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं.
अंदर से टूटा हुआ आंदोलन
विशेषज्ञों का मानना है कि बसवराजू की मौत के बाद पहले से ही बिखराव का सामना कर रहा संगठन और भी कमजोर हो सकता है. अगला महासचिव ऐसे कैडर को संभालेगा जो शांति वार्ता, शहरी आंदोलनों और सशस्त्र संघर्ष के बीच बंटा हुआ है.
भविष्य की राह धुंधली
इसके अलावा, पूर्व महासचिव गणपति अभी भी भूमिगत हैं लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. वहीं, के. रामचंद्र रेड्डी, मिसिर बेसरा और पोथुला कल्पना जैसे नेताओं पर सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी निगरानी है. अब माओवादी आंदोलन अपने इतिहास के सबसे बड़े नेतृत्व संकट के दौर से गुजर रहा है, जहां दिशा और स्थायित्व दोनों अधर में हैं.