भारत ने हाल ही में अपना 76वां गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया है, जबकि देश में दो और बड़े आयोजन हो रहे हैं. जिनमें प्रयागराज में महाकुंभ और दिल्ली में विधानसभा चुनाव शामिल हैं. इन आयोजनों के बीच, कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी की अनुपस्थिति पर सवाल उठने लगे हैं. यह सवाल यह है कि क्या कोई ऐसा नेता, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर और लोकतांत्रिक मूल्यों से दूरी बनाए रखता है, वह देश का नेतृत्व कर सकता है?
महाकुंभ से दूरी: भारत की सांस्कृतिक धरोहर की उपेक्षा
महाकुंभ, जो भारत के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, हर 12 साल में आयोजित होता है और इसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है. भाजपा के नेताओं ने इस आयोजन में भाग लेकर न केवल भारतीय संस्कृति को सम्मानित किया, बल्कि इसकी महत्ता को वैश्विक स्तर पर बढ़ाया. इसके विपरीत, राहुल गांधी ने इस महाकुंभ से दूरी बनाकर यह संदेश दिया कि वे भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर से अनजान हैं. अपनी "जनेऊधारी ब्राह्मण" पहचान को लेकर भी राहुल गांधी ने गणेश चतुर्थी और नवरात्रि जैसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजनों से दूरी बनाई, जो उनकी भारतीय संस्कृति के प्रति उदासीनता को दर्शाता है.
गणतंत्र दिवस परेड से अनुपस्थिति: लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान
गणतंत्र दिवस परेड, जो भारतीय लोकतंत्र और सैनिकों के बलिदान का प्रतीक है. उसमें इस साल राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की अनुपस्थिति ने उनके लोकतांत्रिक मूल्यों और सैनिकों के प्रति सम्मान को लेकर सवाल उठाए. इस दिन परेड में शामिल होकर जहां अन्य नेता देश के लोकतांत्रिक मूल्य और संविधान का सम्मान करते हैं, वहीं राहुल गांधी की गैरमौजूदगी को लोकतंत्र के प्रति उनके दृष्टिकोण पर संदेह पैदा करता है.
बाढ़ संकट के बीच छुट्टियां: राष्ट्रीय जिम्मेदारी पर सवाल
जब भारत के कई राज्य बाढ़ से प्रभावित थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर राहत कार्यों में व्यस्त थे, राहुल गांधी विदेशी छुट्टियों का आनंद ले रहे थे. इस समय उनकी अनुपस्थिति ने उनके नेतृत्व कौशल और राष्ट्रीय जिम्मेदारी पर सवाल खड़े किए हैं.
संविधान दिवस और राम मंदिर भूमि पूजन से दूरी
बता दें कि, साल 2022 में संविधान दिवस के मौके पर राहुल गांधी का सदन में अनुपस्थित रहना और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिवादन न करना उनके संविधान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उदासीनता को दर्शाता है. इसके अलावा, अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन और प्राण-प्रतिष्ठा जैसे ऐतिहासिक अवसरों पर भी राहुल गांधी की अनुपस्थिति ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण पर सवाल खड़े किए.
कांग्रेस की कमजोर चुनावी रणनीति: राहुल गांधी की अनुपस्थिति
दिल्ली विधानसभा चुनाव की शुरुआत में ऐसा प्रतीत हुआ था कि कांग्रेस एक दशक के बाद मजबूती से चुनावी मैदान में उतरेगी, लेकिन अब यह अभियान कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है. पार्टी के शीर्ष नेता चुनाव प्रचार से गायब हैं, और राहुल गांधी का ध्यान केवल विदेश यात्राओं और अन्य व्यक्तिगत मामलों पर है. इसने पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता के बीच निराशा का माहौल बना दिया है.
राहुल गांधी का सवाल: क्या ऐसा नेता देश का नेतृत्व कर सकता है?
राहुल गांधी की यह घटनाएं उनकी राजनीति और नेतृत्व के प्रति गंभीरता पर सवाल उठाती हैं. उनकी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक आयोजनों से दूरी एक पैटर्न बन चुकी है, जो उनके भारतीय संस्कृति और शासन के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी को दर्शाती है. अब यह प्रश्न उठने लगा है कि क्या ऐसा नेता, जो लगातार देश की आत्मा और मूल्यों से दूर रहता है, वह कभी देश का नेतृत्व कर सकता है?