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लालकृष्ण आडवाणी का पहला लोकसभा चुनाव था बेहद रोमांचक, इस बॉलीवुड सुपरस्टार से थी टक्कर; जानें किसने जीती थी जंग

आज भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के अन्य नेताओं ने शुभकामनाएं दीं. लालकृष्ण आडवाणी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1989 में लड़ा था. आज इस अवसर पर जानें उनके राजनीतिक सफर और उनके योगदान के बारे में.

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Edited By: Km Jaya
BJP leader LK Advani India daily
Courtesy: @Ashwin_Butta x account

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के अन्य नेताओं ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं दीं, जो शनिवार 8 नवंबर यानी आज  98 वर्ष के हो गए. भाजपा के संस्थापक नेताओं में से एक, लाल कृष्ण आडवाणी ने राज्यसभा में वर्षों बिताने और भाजपा तथा उसके पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के एक प्रमुख नेता के रूप में कार्य करने के बाद 1989 में अपना लोकसभा जीवन शुरू किया.

उन्होंने हाई-प्रोफाइल नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और कांग्रेस पार्टी की वी. मोहिनी गिरि को हराकर भारत के प्राथमिक विधायी निकाय में एक महत्वपूर्ण प्रवेश किया. 1991 के आम चुनावों में, आडवाणी ने दो सीटों गुजरात में गांधीनगर और नई दिल्ली से चुनाव लड़ने का फैसला किया. उनके प्रतिद्वंद्वी बॉलीवुड सुपरस्टार राजेश खन्ना थे, जिन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ राजनीति में प्रवेश किया था. जिसमें राजेश खन्ना ने कड़े मुकाबले में आडवाणी को लगभग हरा दिया था.

आडवाणी ने कौन सी सीट छोड़ी?

आडवाणी ने अंततः दोनों सीटें जीत लीं, लेकिन नियमों के अनुसार उन्हें एक सीट छोड़नी पड़ी; उन्होंने गांधीनगर सीट बरकरार रखने का फैसला किया और नई दिल्ली सीट छोड़ दी, जिससे उस चुनाव चक्र के सबसे चर्चित चुनावी मुकाबलों में से एक का अंत हो गया.

आडवाणी का कैसा रहा राजनीतिक सफर?

आडवाणी के राजनीतिक सफर पर गौर करें तो यह उल्लेखनीय है कि 1991 के आम चुनावों में, उन्होंने नई दिल्ली लोकसभा सीट मात्र 1,589 मतों के मामूली अंतर से जीती थी और लोकप्रिय अभिनेता राजेश खन्ना को मामूली अंतर से हराया था. जो उस जीत की कड़ी मेहनत और आडवाणी की दृढ़ राजनीतिक उपस्थिति का प्रमाण था. आडवाणी ने बाद में कई कार्यकालों तक गांधीनगर का प्रतिनिधित्व किया और आधुनिक भारतीय राजनीति के निर्णायक नेताओं में से एक बन गए. इन शुरुआती लोकसभा चुनावों के अनुभवों ने उनके लंबे संसदीय करियर की नींव रखी.

भाजपा के गठन और उत्थान में कैसे किया नेतृत्व?

आपातकाल के बाद, आडवाणी ने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कराने में मदद की और बाद में 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भाजपा के संस्थापक सदस्य बने. भाजपा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले आडवाणी ने पार्टी को एक सीमांत शक्ति से एक प्रमुख राष्ट्रीय शक्ति में बदल दिया और 1984 में इसकी लोकसभा सीटों की संख्या मात्र दो से बढ़कर 1998 में 182 हो गई.

कैसा रहा संसदीय और मंत्री पद का करियर?

आडवाणी पहली बार 1970 में राज्यसभा के लिए चुने गए और 1989 तक चार कार्यकाल तक इस पद पर रहे. 1989 के बाद से, उन्होंने सात बार लोकसभा में जीत हासिल की, विशेष रूप से 2019 में अपनी सेवानिवृत्ति तक गांधीनगर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

सरकार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका:

  • 1998 से 2004 तक गृह मंत्री के रूप में कार्य किया.
  • अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 2002 से 2004 तक उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया.
  • पोखरण-II परमाणु परीक्षण, लाहौर बस सेवा की शुरुआत, कारगिल युद्ध की प्रतिक्रिया, आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा), और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और राष्ट्रीय जांच एजेंसी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.