जन्माष्टमी का पर्व भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों और घरों में विशेष सजावट होती है, भजन-कीर्तन गाए जाते हैं और कान्हा को झूला झुलाकर उनकी आराधना की जाती है. इस साल जन्माष्टमी के व्रत और पूजन के लिए विशेष मुहूर्त और पारण का समय बेहद महत्वपूर्ण माना गया है.
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 16 अगस्त की रात को मनाया जाएगा. ज्योतिषीय गणना के अनुसार, कान्हा का जन्मोत्सव मध्यरात्रि 12 बजकर 47 मिनट पर किया जाएगा. व्रत पारण के लिए दो समय शुभ माने गए हैं. पहला 16 अगस्त की रात 12:47 बजे के बाद, और दूसरा 17 अगस्त की सुबह 5:51 बजे के बाद. भक्त अपनी सुविधा अनुसार इन दोनों समयों में से किसी का चुनाव कर सकते हैं.
कई श्रद्धालु व्रत पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करते हैं. सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद भगवान कृष्ण की विधिवत पूजा कर सात्विक भोजन या प्रसाद से व्रत तोड़ा जाता है. ध्यान रहे कि व्रत का पारण कभी भी लहसुन, प्याज या मांसाहार से नहीं करना चाहिए. यह नियम धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है.
जन्माष्टमी के आसपास ग्रहों की चाल भी खास संयोग बना रही है. इस सप्ताह सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करेंगे और केतु के साथ युति करेंगे. वहीं शुक्र कर्क राशि में जाकर बुध के साथ लक्ष्मी-नारायण योग का निर्माण करेंगे. इसके अलावा गजलक्ष्मी, महालक्ष्मी और नवपंचम जैसे कई शुभ राजयोग भी बन रहे हैं. ज्योतिषियों के अनुसार, इन योगों से कई राशियों के जातकों को अप्रत्याशित धन लाभ और सफलता प्राप्त हो सकती है.
व्रत और पूजन विधि
जन्माष्टमी पर भक्त निर्जला या फलाहारी व्रत रखते हैं. पूरे दिन उपवास के बाद रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण की जन्मलीला का स्मरण करते हुए विशेष पूजा-अर्चना होती है. कान्हा को झूला झुलाया जाता है, भजन-कीर्तन किए जाते हैं और फिर भोग लगाया जाता है. पारंपरिक भोग में माखन-मिश्री, खीर, आटे के पूए और धनिया की पंजीरी शामिल होती है. पूजा के बाद आरती कर भूल-चूक के लिए क्षमा याचना की जाती है. इसके उपरांत भक्त प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण कर सकते हैं.