India-China Trade: 'हमारे नक्शे में लिपुलेख...', भारत-चीन ट्रेड डील पर क्यों तिलमिलाया नेपाल? भारत ने भी दिया करारा जवाब
नेपाल ने 20 अगस्त को आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र नेपाल का अभिन्न अंग है. इस पर भारत ने दो टूक कहा कि ऐसे दावे निराधार हैं और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत हैं.
India-China Trade: भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे के जरिए लंबे समय से रुका हुआ सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है. यह महत्वपूर्ण निर्णय 18 और 19 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे के दौरान लिया गया. इस समझौते के बाद शिपकी ला और नाथु ला दर्रों से भी व्यापार को हरी झंडी मिलने वाली है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि भारत-चीन के बीच इस मार्ग से 1954 से व्यापार होता रहा है, लेकिन कोरोना महामारी और अन्य कारणों से हाल के वर्षों में यह रुक गया था.
अब दोनों देशों ने इसे पुनः शुरू करने का फैसला किया है. हालांकि, इस कदम पर नेपाल ने कड़ा विरोध जताया है. नेपाल सरकार ने कहा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा उसका अभिन्न हिस्सा हैं और इन्हें आधिकारिक नक्शे व संविधान में शामिल किया गया है.
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
नेपाल के इस दावे पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल का रुख न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और न ही साक्ष्यों पर. भारत ने साफ किया कि दशकों से इस मार्ग से व्यापार होता आ रहा है और नेपाल की आपत्ति अनुचित है.
नेपाल की आपत्ति और भारत की प्रतिक्रिया
नेपाल ने 20 अगस्त को आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र नेपाल का अभिन्न अंग है. इस पर भारत ने दो टूक कहा कि ऐसे दावे निराधार हैं और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत हैं. भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह व्यापार मार्ग दशकों से सक्रिय रहा है और इसे दोबारा शुरू करना दोनों देशों के हित में है.
चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने भारत दौरे के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. इन बैठकों के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष लिपुलेख, शिपकी ला और नाथु ला दर्रों के जरिए व्यापार को पुनः शुरू करने पर सहमत हुए हैं. यह फैसला न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि सीमा क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देगा.
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