UPSC ने जुलाई में पूजा खेडकर पर अपना नाम, अपने माता-पिता का नाम, अपनी फोटो, सिग्नेचर, ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता बदलकर तय सीमा से अधिक बार एग्जाम अटैम्प्ट करने का आरोप लगाया था. सूचना के अधिकार (RTI) एक्ट के तहत प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार, 2010 से 2019 यानी 9 साल तक चली आधिकारिक जांच में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल करने की 1084 शिकायतें सामने आईं. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के रिकॉर्ड से पता चलता है कि इन मामलों में 92 कर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.
सरकार के अधीन 93 मंत्रालयों और विभागों में से 59 के लिए RTI रिकॉर्ड उपलब्ध कराए गए. आंकड़े बताते हैं कि 9 सालों में रेलवे ने 349 शिकायतें दर्ज कीं, उसके बाद डाक विभाग (259), शिपिंग मंत्रालय (202) और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (138) का स्थान रहा. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सूत्रों ने बताया कि इनमें से कई मामले विभिन्न अदालतों में भी लंबित हैं.
जुलाई में पूजा खेडकर विवाद के बाद इंडियन एक्सप्रेस की ओर से दायर एक आवेदन पर RTI का जवाब आया. इससे पता चलता है कि DOPT ने तत्कालीन लोकसभा भाजपा सांसद रतिलाल कालिदास वर्मा की अध्यक्षता वाली एससी/एसटी के कल्याण पर तत्कालीन संसदीय समिति की सिफारिश के बाद 2010 में ऐसी शिकायतों का डेटा एकत्र करना शुरू किया था.
समिति ने अनुशंसा की कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग सभी मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों, स्वायत्त निकायों और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से झूठे जाति प्रमाण-पत्रों के मामलों के संबंध में नियमित रूप से सूचना प्राप्त करे, ताकि उनकी प्रगति और निपटान की निगरानी की जा सके, ताकि समस्या से निपटने के लिए आवश्यक कार्य योजना बनाई जा सके.
इस संबंध में पहला संदेश कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा 28 जनवरी, 2010 को मंत्रालयों और विभागों को जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि वे अपने प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले सभी संगठनों से उन मामलों के बारे में जानकारी एकत्र करें, जहां उम्मीदवारों ने झूठे/फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्ति प्राप्त की/कथित तौर पर ऐसा किया गया. इसके लिए 31 मार्च, 2010 तक की समय-सीमा दी गई थी.
रिकॉर्ड के अनुसार, इस तरह के डेटा की मांग करने वाला अंतिम कम्यूनिकेशन 16 मई, 2019 को जारी किया गया था. DOPT ने 8 अगस्त, 2024 को अपने आरटीआई जवाब में कहा कि आज की तारीख तक, इन विभागों में ऐसा कोई डेटा केंद्रीय रूप से नहीं रखा जाता है.
DOPT ने कहा कि हमने समय-समय पर सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को जाति प्रमाण पत्र का समय पर वैरिफिकेशन सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए हैं. जाति प्रमाण पत्र जारी करना और उसका वैरिफिकेशन करना संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है.
रोजगार के लिए सरकार के आरक्षण कोटे के अनुसार, अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत तथा शारीरिक रूप से विकलांगों को प्रत्येक श्रेणी में 3 प्रतिशत आरक्षण मिलना अनिवार्य है.
DOPT के अनुसार, 1993 में जारी एक आदेश में कहा गया कि अगर ये पाया जाता है कि किसी सरकारी कर्मचारी ने नियुक्ति पाने के लिए गलत जानकारी दी है या गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है, तो उसे सेवा में नहीं रखा जाना चाहिए.
जुलाई में, यूपीएससी ने पूजा खेडकर पर नाम, माता-पिता का नाम, अपनी फोटो, सिग्नेचर, ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता बदलकर परीक्षा नियमों के तहत स्वीकार्य सीमा से अधिक प्रयासों का धोखाधड़ी से लाभ उठाने का आरोप लगाया था. खेडकर ने इस महीने की शुरुआत में दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें UPSC की ओर से उनकी सिविल सेवा उम्मीदवारी रद्द करने और भविष्य में किसी भी परीक्षा में बैठने पर रोक लगाने के फैसले को चुनौती दी गई थी.