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India Daily

ऐसा क्रांतिकारी जिसको 7 बार दी गई फांसी, माता को चढ़ाता था अंग्रेजों की बलि

Freedom Fighter Babu Bandhu Singh: भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली. लेकिन इसके पीछे न जाने कितने वीर क्रांतिकारियों ने अपना लहू बहाया. बहुत से क्रांतिकारियों को तो हम आज के समय में भूल से गए हैं. उनको हम आज गुमनाम योद्धा के नाम से याद करते हैं.

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Edited By: Suraj Tiwari
Freedom Fighter Babu Bandhu Singh-Tarkulha Devi

हाइलाइट्स

  • तरकुलहा देवी में चढ़ा देता था अंग्रेजों की बलि
  • 7वीं बार में खुद के हाथों तैयार किया फंदा

Freedom Fighter Babu Bandhu Singh: भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली. लेकिन इसके पीछे न जाने कितने वीर क्रांतिकारियों ने अपना लहू बहाया. बहुत से क्रांतिकारियों को तो हम आज के समय में भूल से गए हैं क्योंकि उनके देश प्रेम और वीरता को किसी किताब में नहीं दर्ज किया गया. हालांकि फिर भी हम ऐसे क्रांतिवीरों को नमन करके हैं और उनकी कहानी आप तक लाने का प्रयास कर रहे हैं. जिसमें से एक नाम था गोरखपुर के अमर शहीद बाबू बंधू सिंह. 

1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम में गोरखपुर का एक वीर क्रांतिकारी इस कदर अंग्रेजों के नाम में दम कर चुका था कि गोरे उसको हर हाल में फांसी देना चाहते थे. लेकिन किसी न किसी कारण से वो अंग्रेजों के चंगूल से बच निकलता था.

तरकुलहा देवी में चढ़ा देता था अंग्रेजों की बलि

गोरखपुर के चौरी चौरा स्थित विशाल जगंल में तरकुलहा देवी का मंदिर भक्तों के आस्था का केंद्र है. ऐसी मान्यता है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में गोरखपुर के वीर क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह पर तरकुलहा देवी माता का विशेष आशीर्वाद था. यहां बंधू सिंह माता की पूजा-अर्चना किया करते थे. इसके साथ ही बंधू सिंह अंगेजों की बलि माता के चरणों में लाकर चढ़ा दिए करते थे. इस वजह से बंधू सिंह से अंग्रेज अफसर भी घबराते थे. देश प्रेम को देखते हुए अंग्रेज उनके हर हाल में फांसी दे देना चाहते थे. लेकिन इसको लेकर गजब का चमत्कार देखने को मिला.

7वीं बार में खुद के हाथों तैयार किया फंदा

बंधू सिंह को फांसी देने के लिए जल्लाद ने फंदा तैयार किया और उनके गले में पहना दिया. लेकिन फांसी से पहले ही रस्सी टुट गई. जिसको देखकर हर कोई चकित रह गया. ये घटना एक बार नहीं बल्कि 6 बार हुई. ऐसा बताया जाता है कि फिर बाबू बंधू सिंह ने खुद मां तरकुलही देवी से प्रार्थना किया कि मां आप मुझे अपने चरणों में ले लो. इस बार जब सातवीं दफा बंधू सिंह को जब फांसी की तैयारी हुई उस समय उन्होंने अपने हाथ से ही फांसी का फंदा अपने गले में डाला. तब जाकर ये क्रांतिकारी वीरगति को प्राप्त हुआ. बंधू सिंह की शहादत होने के बाद मानों अंग्रेजों ने चैन की सांस ली.