एशिया कप फाइनल में भारत की जीत के बाद मैदान से बाहर भी चर्चा का एक नया मोर्चा खुल गया है. एक ओर क्रिकेट लीजेंड कपिल देव ने पाकिस्तान से संवाद और पड़ोसी रिश्तों को बेहतर बनाने की बात कही, तो दूसरी ओर सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों ने उनके विचारों को खारिज करते हुए पाकिस्तान को कठोर शब्दों में 'आतंकी राज्य' करार दिया है. इस तकरार ने खेल, कूटनीति और सुरक्षा के बीच गहराते तनाव को और उजागर कर दिया है.
दरअसल कपिल देव ने एशिया कप फाइनल के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि जब सरकार और क्रिकेट बोर्ड खिलाड़ियों को पाकिस्तान से खेलने की अनुमति देते हैं, तो खेल के दौरान हाथ मिलाना 'कोई बड़ी बात नहीं' है. उन्होंने जोर दिया कि पिछले 70 वर्षों में भारत-पाक रिश्तों में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है, लेकिन 'हम बड़े भाई की तरह' पड़ोसी से संवाद की कोशिश करते रहना चाहिए. उनके मुताबिक, एकमात्र रास्ता बातचीत का है और इससे ही स्थायी समाधान निकल सकता है.
कपिल देव की इस सोच से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों सहमत नहीं हुए. उन्होंने X पर लिखा कि 'हमारे पड़ोसी को लेकर यह 'बड़ा भाई' और 'पड़ोसी' वाला भाव हकीकत से मेल नहीं खाता.' ढिल्लों ने पाकिस्तान को 'आतंकी राज्य' बताते हुए कहा कि उसके आतंकवादी दशकों से निर्दोष भारतीय नागरिकों की हत्या कर रहे हैं और सुरक्षाबलों को शहीद कर रहे हैं. उनका साफ संदेश था 'उन्हें वहीं रखें जहां वे हैं और जहां के लायक हैं.'
केवल ढिल्लों ही नहीं, राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने भी कपिल देव की राय का विरोध किया है. उन्होंने कहा, 'सम्मानपूर्वक कहना चाहूंगा कपिल देव जी, भारत पाकिस्तान में आतंकी हमले नहीं करता.' पूनावाला ने यह भी जोड़ा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी भारत ने नागरिकों को निशाना नहीं बनाया, जबकि पाकिस्तान बार-बार आतंक का सहारा लेता है. उन्होंने सख्त शब्दों में लिखा 'कृपया पाकिस्तान से बातचीत का विचार छोड़ दीजिए. वे हमें परमाणु हमले की धमकी देते हैं!'
एशिया कप की ट्रॉफी लेने से खिलाड़ियों का इनकार और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड प्रमुख से हाथ न मिलाना केवल खेल भावना का मुद्दा नहीं रहा. यह उस तनाव का प्रतीक है जो मैदान से बाहर सीमा और कूटनीति तक फैला हुआ है. कपिल देव ने इसे केवल 'खेल भावना' से जोड़ने की कोशिश की, जबकि ढिल्लों और कई विश्लेषक इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के संदर्भ में देख रहे हैं. इस बहस ने यह साफ कर दिया है कि भारत-पाक रिश्ते अब केवल खेल या सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इन्हें सुरक्षा और कूटनीति के चश्मे से ही देखा जाएगा.