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Premchand Death Anniversary: धनपत राय श्रीवास्तव से मुंशी प्रेमचंद बनने तक का सफर; पत्रकारिता से गहरा नाता, यहां जानिए पूरी कहानी

Premchand Death Anniversary: प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. उन्होंने शुरुआत में नवाब राय के नाम से लिखा, लेकिन बाद में वह मुंशी प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए. आम धारणा है कि मुंशी शब्द उनके पिता के पेशे से जुड़ा, परंतु हकीकत कुछ और थी.

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Edited By: Reepu Kumari
Premchand Death Anniversary
Courtesy: Pinterest

Premchand Death Anniversary: मुंशी प्रेमचंद का नाम आते ही हिंदी और उर्दू साहित्य का स्वर्णिम अध्याय हमारी आंखों के सामने उभर आता है. उन्हें उपन्यास और कहानियों का सम्राट कहा जाता है. उनकी लेखनी ने न केवल हिंदी कथा साहित्य की दिशा बदली, बल्कि समाज में व्याप्त रूढ़ियों और कुरीतियों को भी बेबाकी से उजागर किया. प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियाँ आम जनजीवन से जुड़ी हुई हैं, इसलिए हर वर्ग के पाठकों ने उन्हें अपना प्रिय लेखक माना.

वाराणसी जिले के लमही गांव में जन्मे धनपत राय श्रीवास्तव को दुनिया मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानती है. उन्होंने साहित्य की ऐसी परंपरा को जन्म दिया, जिसने पूरे सदी तक लेखकों को मार्गदर्शन दिया. उनकी कहानियों में जहां यथार्थ का चित्रण है, वहीं उपन्यासों में संघर्ष, आशा और समाज सुधार की गूंज सुनाई देती है. आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके जीवन और साहित्यिक योगदान को याद करना हम सबके लिए गर्व की बात है.

वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था जन्म

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था. उनके पिता अजायब राय एक डाकघर में मुंशी के पद पर कार्यरत थे. प्रेमचंद का बचपन संघर्षों से भरा था, लेकिन इसी संघर्ष ने उनकी लेखनी को गहराई और संवेदनशीलता प्रदान की. प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में गरीबों, किसानों और श्रमिकों के दुख-दर्द को आवाज दी.

धनपत राय श्रीवास्तव से मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. उन्होंने शुरुआत में नवाब राय के नाम से लिखा, लेकिन बाद में वह मुंशी प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए. आम धारणा है कि ‘मुंशी’ शब्द उनके पिता के पेशे से जुड़ा, परंतु हकीकत कुछ और थी. जब वे हंस अखबार में कार्यरत थे, तब उनके साथ कन्हैया लाल मुंशी भी लिखते थे. संपादकीय छपने पर नामों की गड़बड़ी के कारण पाठक प्रेमचंद को ‘मुंशी प्रेमचंद’ कहकर पहचानने लगे और यही नाम हमेशा के लिए अमर हो गया.

साहित्य में योगदान और विरासत

मुंशी प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ और लगभग दर्जनभर उपन्यास लिखे. उनकी प्रमुख कृतियों में गोदान, गबन, निर्मला, सेवासदन और कर्मभूमि जैसे उपन्यास शामिल हैं, जबकि कफ़न, पूस की रात और पंच परमेश्वर जैसी कहानियां आज भी हिंदी साहित्य के शिखर पर मानी जाती हैं. उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज सुधार का बीड़ा उठाया और आमजन के जीवन को केंद्र में रखा.