पहले योगी को फोन, अब नितिन नबीन की एंट्री…, हमेशा चौंकाते हैं BJP के मास्टर स्ट्रोक
भाजपा ने नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर एक बार फिर सबको चौंकाया है. पार्टी पहले भी मुख्यमंत्री और शीर्ष पदों पर ऐसे नेताओं को चुनती रही है, जिनकी पहले चर्चा नहीं होती.
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर अपने चौंकाने वाले फैसले को लेकर चर्चा में है. पार्टी ने नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर सियासी हलकों को हैरान कर दिया है. यह फैसला उसी परंपरा का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भाजपा अक्सर ऐसे नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देती है, जिनके नाम की पहले से चर्चा नहीं होती. इससे पहले भी पार्टी नेतृत्व कई बार अचानक लिए गए फैसलों से सभी को चौंकाता रहा है.
भाजपा में सरप्राइज राजनीति का सबसे चर्चित उदाहरण वर्ष 2017 का है. उस समय तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ को फोन कर लखनऊ जाकर उत्तर प्रदेश की कमान संभालने की सूचना दी थी. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में उस पल को याद करते हुए बताया कि योगी आदित्यनाथ को खुद भी इसकी उम्मीद नहीं थी. यह भाजपा की कार्यशैली को दर्शाता है, जहां फैसले बेहद गोपनीय तरीके से लिए जाते हैं.
क्या नितिन नबीन को भी नहीं था अंदाजा?
अब उसी कड़ी में नितिन नबीन का नाम जुड़ गया है. तमाम अटकलों के बीच रविवार को उन्हें भाजपा का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया. नितिन नबीन उस समय अपने विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ता सम्मेलन कर रहे थे और उन्हें भी इस फैसले का कोई अंदाजा नहीं था. पार्टी सूत्रों के अनुसार 14 जनवरी के बाद उन्हें पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है.
क्या टूटने वाला है रिकार्ड?
नितिन नबीन की उम्र अभी केवल साढ़े 45 वर्ष है. यदि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं, तो वे भाजपा के सबसे युवा अध्यक्ष होंगे. इससे पहले अमित शाह 49 वर्ष और नितिन गडकरी 52 वर्ष की उम्र में यह पद संभाल चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी भी कम उम्र में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे, लेकिन भाजपा के इतिहास में नितिन नबीन एक नया रिकॉर्ड बना सकते हैं.
मुख्यमंत्रियों के चयन ने कैसे किया सबको हैरान?
भाजपा ने इससे पहले भी राज्यों में मुख्यमंत्री चयन को लेकर सबको चौंकाया है. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, राजस्थान में भजनलाल शर्मा और मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाना ऐसे ही फैसले रहे हैं. गुजरात में पूरी कैबिनेट बदलना और उत्तराखंड में एक साल में दो बार मुख्यमंत्री बदलना भी इसी रणनीति का हिस्सा रहा है.
महाराष्ट्र में बड़ी पार्टी होने के बावजूद एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना और दिल्ली में पहली बार की विधायक रेखा गुप्ता को सीएम बनाना भी भाजपा की अलग कार्यशैली को दिखाता है.