Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करीब 18 महीने पहले यानी अगस्त 2022 में भाजपा का साथ छोड़ दिया था. उस दौरान नीतीश कुमार ने भाजपा पर अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को तोड़ने और खत्म करने की कोशिश का आरोप लगाया था. आरोपों के बाद नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के साथ सरकार बना ली. राजद और कांग्रेस समेत अन्य दलों के साथ राज्य में सरकार बनाने के करीब तीन महीने बाद यानी अक्टूबर-नवंबर 2022 में नीतीश ने कहा कि राजद के नेता और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव 2025 में महागठबंधन के विधानसभा चुनाव अभियान का नेतृत्व करेंगे.
हालांकि अब हालात और जज्बात दोनों बदल चुके हैं. जनवरी 2024 में के गणतंत्र दिवस समारोह में ये दोनों बातें उस वक्त सतह पर दिखी, जब नीतीश और तेजस्वी ने पटना में गणतंत्र दिवस समारोह में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखी. ये वही समय था, जब अटकलें चल रही थीं कि नीतीश कुमार फिर से अपने विधायकों और पार्टी के नेताओं के साथ महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल हो सकते हैं. फिलहाल, ये अटकलें ही हैं. कहा जा रहा है कि इन अटकलों पर आज दोपहर तक विराम लग जाएगा और नीतीश कुमार इस्तीफा देने के बाद भाजपा के सहयोग से राज्य में फिर से सरकार बनाएंगे और 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.
एनडीए में शामिल प्रमुख पार्टियों में से एक जदयू को लगने लगा था कि उसकी साख और जनता पर पकड़ कमजोर होती जा रही है. उसने ऐसा तब महसूस किया, जब 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए. विधानसभा चुनाव के नतीजों में नीतीश कुमार की पार्टी की 43 सीटें आईं, जो 2015 में 71 थी. वहीं, भाजपा की सीटों की संख्या 53 से बढ़कर 74 हो गई. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सबसे बड़ी पार्टी राजद थी, जिसके 75 विधायकों ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा उभरी.
विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद नीतीश कुमार ने भाजपा के सहयोग से सरकार तो बना ली. लेकिन इसके बाद अपनी पार्टी के नेताओं के साथ लगातार बातचीत में नीतीश ने भाजपा को अपनी कमजोर हो रही पकड़ के लिए जिम्मेदार बताने लगी. नीतीश कुमार का आरोप था कि 2020 विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के नेता चिराग पासवान को लगभग सभी निर्वाचन क्षेत्रों में जदयू के प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़ा कर दिए. नीतीश कुमार का मानना था कि चिराग ने उनकी पार्टी के वोट काटने और उसके उम्मीदवारों को हराने के लिए भाजपा के प्रॉक्सी के रूप में काम किया था. भले ही एलजेपी ने सिर्फ एक सीट जीती, लेकिन नीतीश के वोट में जबरदस्त सेंधमारी की.
ऐसा कहा जाता है कि नीतीश डिप्टी सीएम रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर सहज महसूस नहीं कर रहे थे. कहा जाता है कि 13 साल तक डिप्टी सीएम रहे सुशील कुमार मोदी के साथ उनका तालमेल दोनों नए डिप्टी सीएम के मुकाबले काफी बेहतर था, क्योंकि जेपी आंदोलन के दिनों से ही दोनों (नीतीश कुमार और सुशील मोदी) के बीच घनिष्ठ संबंध थे. कहा ये भी जाता है कि नीतीश कुमार की ओर से आरोप लगाया गया कि उस वक्त केंद्रीय मंत्री रहे जद (यू) नेता आरसीपी सिंह के जरिए भाजपा ने जदयू को तोड़ने की कोशिश की थी.
जद (यू) के अंदरूनी सूत्र कांग्रेस, राजद और I.N.D.I.A गठबंधन के प्रति नीतीश कुमार के बढ़ते मोहभंग के कई कारण बताते हैं. इसका मुख्य कारण उन्हें वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में असहजता महसूस होना बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू के कम से कम 7 सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं. ये सांसद 2019 में NDA के सामाजिक संयोजन के कारण जीते थे और राजद, कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन में 2024 में 2019 जैसे परिणाम की उम्मीद नहीं कर रहे थे.
साथ ही, जदयू के पूर्व चीफ राजीव रंजन सिंह को छोड़कर पार्टी के अधिकांश नेता भाजपा के साथ गठबंधन के पक्ष में थे. नीतीश को संभवतः ये अहसास हो गया था कि यदि उन्होंने पार्टी के नेताओं की बात नहीं मानी, तो जदयू टूट सकती है. इसी को देखते हुए दिसंबर 2023 में उन्होंने राजीव रंजन सिंह को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाकर खुद अध्यक्ष पद संभाला. कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि राजीव रंजन सिंह की राजद के लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ नजदीकी थी, जिसे नीतीश कुमार पसंद नहीं कर रहे थे.
2019 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू ने एनडीए के साथ मिलकर 17 सीटों पर चुनाव लड़ी और 16 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई. अब जदयू के आंतरिक सर्वेक्षणों में उत्साहजनक परिणाम नहीं आने के आशंका के बीच संभवतः नीतीश कुमार ने ये अनुमान लगाया कि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी जीत की संभावनाओं में सुधार करेगी. जद (यू) को संभवतः ये महसूस हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन, मोदी की लोकप्रियता और उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ जाने पर पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सकती है.
इसके अलावा अन्य और आखिरी लेकिन प्रमुख कारणों में एक कारण ये भी कि नीतीश कुमार ने पिछले साल विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के लिए पहल की थी, जिसके बाद I.N.D.I.A गठबंधन बनाया गया था. कहा जा रहा है कि I.N.D.I.A गठबंधन में नीतीश कुमार को प्रमुख पद की उम्मीद थी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. नीतीश कुमार की पार्टी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उनके बजाए कांग्रेस अन्य पार्टियों को गठबंधन में ज्यादा तहरीज दे रही है. ये भी कहा गया कि गठबंधन के बारे में सोचने के बजाए (सीट शेयरिंग प्रमुख) राहुल गांधी ने 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' शुरू कर दी, जिसके बाद जदयू को लगा कि उनकी तैयारियों को झटका लग सकता है. इन सभी कारणों को देखते हुए नीतीश कुमार ने एक बार फिर एनडीए के साथ सरकार बनाने का मन बना लिया.