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बाबरी विध्वंस के FIR में आडवाणी से लेकर उमा, जोशी तक का नाम, पर वाजपेयी का क्यों नहीं?

करीब 31 साल पहले यानी बाबरी मस्जिद विध्वंस से ठीक एक दिन पहले (5 दिसंबर, 1992) अटल जी अयोध्या से 135 किमी दूर लखनऊ में थे. इस दौरान उन्होंने लखनऊ के अमीनाबाद के झंडेवालान पार्क में विवादित ढांचे को लेकर बयान दिया था.

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Om Pratap
Babri demolition case

Ayodhya ke Ram Babri demolition case: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन करेंगे. इसी दिन भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा भी होगी. कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि रामलला के मंदिर के लिए 500 साल पुराना संघर्ष खत्म हुआ, लेकिन असल मामला 6 दिसंबर 1992 के बाद ही माना जाता है, जिस दिन करीब डेढ़ लाख लोगों की भीड़ ने अयोध्या के विवादित ढांचे को गिरा दिया था. 6 दिसंबर को 11 बजकर 44 मिनट से लेकर शाम करीब साढ़े पांच बजे तक विध्वंस चला था. करीब 6 घंटे में पूरा विवादित ढांचा गिरा दिया गया. 

विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में हर बड़े मामले की तरह FIR दर्ज हुई, कुछ लोगों को आरोपी बनाया गया, जांच आयोग का गठन हुआ, मामले को CBI को सौंपा गया, स्पेशल कोर्ट में सुनवाई हुई, जांच रिपोर्ट की सुनवाई भी हुई और आखिरकार कोर्ट ने पहले तो 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया. फिर 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमिपूजन और शिलान्यास किया गया और आखिर में 30 सितंबर 2020 को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार समेत अन्य सभी 32 आरोपियों को सबूतों के आभाव में बरी कर दिया. सवाल ये कि जिस FIR में लालकृष्ण आडवाणी लेकर उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, अशोक सिंघल तक का नाम शामिल था, उसमें अटल बिहारी वाजपेयी का नाम क्यों नहीं था?

सबसे पहले जानिए, विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद क्या बोले थे अटल जी?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में 7 मई 1995 को अटल बिहारी वाजपेयी का एक आर्टिकल छपा था. उन्होंने लिखा- जब मैं 10वीं का छात्र था, तब मैंने ‘हिंदू तन मन हिंदू जीवन’ शीर्षक वाली कविता लिखी थी. मैंने उस वक्त लिखा था- कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी? मैं आज भी इस बात पर कायम हूं. आर्टिकल में उन्होंने लिखा- हम लोगों (कारसेवकों) ने अयोध्या में ढांचे को गिरा दिया. ये इतिहास में पहली घटना है, जब हिंदुओं ने उनके (मुसलमानों) धार्मिक स्थल को ढहा दिया. हम लोग बातचीत और विधिसम्मत तरीके से इसका सामाधान चाहते थे. लेकिन, बुराई के लिए कोई पुरस्कार नहीं होता. उन्होंने ये भी कहा था कि गांधीजी भी देश के विभाजन के खिलाफ थे लेकिन, जब हो गया तो उन्होंने स्वीकार किया या नहीं?

आखिर 31 साल पहले अटल जी ने क्या भाषण दिया था?

करीब 31 साल पहले यानी बाबरी मस्जिद विध्वंस से ठीक एक दिन पहले (5 दिसंबर, 1992) अटल जी अयोध्या से 135 किमी दूर लखनऊ में थे. इस दौरान उन्होंने लखनऊ के अमीनाबाद के झंडेवालान पार्क में विवादित ढांचे को लेकर बयान दिया था. अटल जी ने कहा था- विवादित स्थल पर नुकीले पत्थरों को समतल करने की जरूरत है. 

उन्होंने कहा- वहां नुकीले पत्थर हैं. उन पर कोई बैठ नहीं सकता. नुकीले जमीन को समतल करना पड़ेगा, उसे बैठने लायक बनाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि बैठने लायक बन जाने के बाद वहां कुछ निर्माण कार्य होगा, जहां यज्ञ का प्रबंध करना है. अटल जी के इस बयान के बाद पार्क में नारेबाजी होने लगी, तालियां बजने लगीं. आखिर में उन्होंने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि अगले दिन यानी 6 दिसंबर को अयोध्या में क्या होने वाला है? मुझे किसी जरूरी काम से दिल्ली जाना पड़ रहा है.

लखनऊ के पार्क में दिए गए अटल जी के इस बयान को अभी भी बाबरी मस्जिद ढहाने को लेकर कारसेवकों को उकसाने और इस पर उनकी मौन सहमति के रूप में माना जाता है.

अटल जी का नाम FIR में क्यों नहीं?

  • 6 दिसंबर 1992 को अटल जी मौके पर नहीं थे, यानी जब विवादित ढांचा गिराया जा रहा था, तब अटल जी अयोध्या में नहीं थे.
  • घटना वाले दिन उत्तर प्रदेश या दिल्ली से भी उन्होंने बाबरी विध्वंस के लिए कोई भाषण नहीं दिया, न किसी तरह से किसी से कोई भी अपील की या किसी संगठन का भी नेतृत्व नहीं किया.
  • बाबरी विध्वंस की किसी भी तरह की उनकी ओर से बनाई गई योजना सामने नहीं आई.

आखिर क्यों उठे सवाल?

  • 5 दिसंबर 1992 को अटल जी ने लखनऊ में एक भाषण दिया था. इसे आधार बनाते हुए बाबरी विध्वंस के 10 दिन बाद ही बनाई गए 'अब्राहिम आयोग' ने कहा कि अटल जी को विवादित ढांचा गिराने की जानकारी थी. 
  • हालांकि, आयोग ने ये भी कहा कि बाबरी गिराने की साजिश अटल जी ने बनाई थी, लेकिन आयोग इसे नहीं सिद्ध कर पाया. 
  • अब जब विवादित ढांचा गिराए जाने के दौरान अटल जी मौके पर नहीं थे, ढांचा गिराए जाने के किसी भी तरह की साजिश में रहने का कोई प्रमाण नहीं है, तो फिर FIR में उनका नाम क्यों होगा? कानूनी रूप से ये संभव नहीं है.

विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद FIR में इनके नाम

6 दिसंबर को 11 बजकर 44 मिनट से लेकर शाम करीब साढ़े पांच बजे तक विध्वंस चला था. करीब 6 घंटे में पूरा विवादित ढांचा गिरा दिया गया था. ढांचा गिराए जाने के बाद वहां अस्थायी मंदिर बनाया गया. इसी दिन मामले में दो FIR दर्ज की गई.

पहली FIR संख्या 197/1992: इसमें बाबरी विध्वंस से जुड़े तमाम कारसेवकों के नाम दर्ज किए गए. इनके खिलाफ डकैती, लूट-पाट, चोट पहुंचाने, इबादत की जगह को नुकसान पहुंचाने और धर्म के आधार पर दो समुदायों में दुश्मनी बढ़ाने जैसे आरोप लगाए गए.

दूसरी FIR संख्या 198/1992: इसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP), विश्व हिन्दू परिषद (VHP), बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) से जुड़े मात्र 8 लोगों के नाम शामिल किए गए. इन आठ लोगों पर रामकथा पार्क में भड़काऊ भाषण देने का आरोप था. साल 1993 में इसमें धारा 120बी यानी आपराधिक साजिश भी जोड़ दिया गया.

दूसरी FIR में जिन आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, उनमें लालकृष्ण आडवाणी (भाजपा नेता),  मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल (VHP के तत्कालीन महासचिव), बजरंग दल के नेता विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया नामजद किए गए थे. 

दोनों में से किसी भी FIR में अटल जी का नाम शामिल नहीं किया गया. 

5 अक्टूबर 1993 को CBI ने दाखिल की चार्जशीट, इन नामों को जोड़ा

5 अक्टूबर 1993 को CBI ने दोनों FIR को एक साथ शामिल कर कोर्ट में संयुक्त आरोप पत्र दाखिल किया. चार्जशीट में बाला साहेब ठाकरे, कल्याण सिंह, चंपत राय, धरमदास, महंत नृत्य गोपाल दास और कुछ अन्य लोगों को अभियुक्त के तौर पर शामिल किया गया. 

कुल मिलाकर बाबरी विध्वंस कांड में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन इनमें अटल बिहारी वाजपेयी का नाम शामिल नहीं था.