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India Daily

विदेश मंत्री एस जयशंकर के दौरे से पहले चीन की नापाक हरकत, तिब्बत को भारत के लिए बता डाला बोझ

जयशंकर की चीन यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की कोशिशें चल रही हैं. तिब्बत और दलाई लामा का मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक संवेदनशील बिंदु बना हुआ है. यह यात्रा दोनों देशों के लिए एक अवसर है कि वे आपसी विश्वास बहाली और सीमा विवाद के समाधान की दिशा में कदम उठाएं.

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Edited By: Mayank Tiwari
external affairs minister S Jaishankar with Dalai Lama
Courtesy: Social Media

विदेश मंत्री एस जयशंकर की 14 और 15 जुलाई को होने वाली चीन यात्रा से पहले, बीजिंग ने रविवार (13 जुलाई) को तिब्बत से जुड़े मुद्दों, विशेष रूप से दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर कड़ा रुख अपनाया. चीन ने इसे द्विपक्षीय संबंधों में एक "कांटा" और भारत के लिए "बोझ" करार दिया. यह यात्रा 2020 में लद्दाख में हुई घातक सैन्य झड़पों के बाद जयशंकर की पहली चीन यात्रा होगी.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 9 जुलाई को अपने 90वें जन्मदिन से पहले, दलाई लामा ने घोषणा की कि केवल उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट ही उनके पुनर्जन्म को मान्यता दे सकता है. इस बयान पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी. 

दलाई लामा के पुनर्जन्म पर विवाद

चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया पर कहा, "रणनीतिक और शैक्षणिक समुदाय के सदस्यों, जिसमें पूर्व अधिकारी शामिल हैं, उन्होंने दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर अनुचित टिप्पणियां की हैं." उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे पेशेवरों को "ज़िजांग (तिब्बत) से संबंधित मुद्दों की संवेदनशीलता को पूरी तरह समझना चाहिए.

"यू जिंग ने आगे कहा, "दलाई लामा का उत्तराधिकार पूरी तरह से चीन का आंतरिक मामला है, जिसमें किसी भी बाहरी ताकत का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा." उन्होंने चेतावनी दी, "वास्तव में, ज़िजांग से संबंधित मुद्दा चीन-भारत संबंधों में एक कांटा है और यह भारत के लिए बोझ बन गया है. 'ज़िजांग कार्ड' खेलना निश्चित रूप से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा.

"चीन का दावा और भारत का रुख

चीनी राजदूत शू फीहोंग ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी की. उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, "चीनी सरकार उन धार्मिक मामलों को नियंत्रित करती है जो राष्ट्रीय हितों से जुड़े हैं." उन्होंने दलाई लामा पर "चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों" में शामिल होने का आरोप लगाया और कहा, "किसी भी विदेशी संगठन या व्यक्ति द्वारा पुनर्जन्म प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने या इसे निर्देशित करने के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा."भारत ने इस विवाद पर सतर्क रुख अपनाया है.

4 जुलाई को विदेश मंत्रालय ने कहा कि सरकार धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं से संबंधित मामलों पर कोई रुख नहीं अपनाती या बोलती. यह बयान दलाई लामा की टिप्पणियों को केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू के समर्थन के बाद आया, जो धर्मशाला में उनके जन्मदिन समारोह में शामिल हुए थे.

लद्दाख तनाव के बाद संबंधों में सुधार की कोशिश

जयशंकर की यह यात्रा 2020 में लद्दाख के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य तनाव के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. पिछले साल अक्टूबर में दोनों पक्षों ने लद्दाख में गतिरोध समाप्त करने पर सहमति जताई थी.

जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन जाएंगे, जहां उनकी मुलाकात अपने चीनी समकक्ष वांग यी से होगी. इस दौरान दोनों देश लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा करेंगे.

तिब्बत और दलाई लामा का इतिहास

दलाई लामा 1959 में चीनी सैन्य कार्रवाई के बाद तिब्बत से भागकर भारत में शरण ले चुके हैं. तब से वह धर्मशाला में निर्वासित जीवन जी रहे हैं. उनकी हालिया घोषणा ने तिब्बत के भविष्य और उनके उत्तराधिकार को लेकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. चीन का दावा है कि अगले दलाई लामा को उसकी मंजूरी जरूरी है, जबकि दलाई लामा ने इसे केवल अपने ट्रस्ट के अधिकार में बताया है.