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दार्जिलिंग में लोहे के पुल गिरने का खौफनाक Video आया सामने, देखिए कैसे ताश के पत्ते की तरह गिरा

Iron bridge collapses in Darjeeling: दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और सिक्किम में पिछले 48 घंटों से जारी मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को तहस-नहस कर दिया है. 4-5 अक्टूबर 2025 को हुई भारी बारिश और भूस्खलनों ने सड़कें और पुलों को पूरी तरह नुकसान पहुंचाया.

Iron bridge collapses in Darjeeling
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Iron bridge collapses in Darjeeling: दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और सिक्किम में पिछले 48 घंटों से जारी मूसलाधार बारिश ने जनजीवन को तहस-नहस कर दिया है. 4-5 अक्टूबर 2025 को हुई भारी बारिश और भूस्खलनों ने सड़कें और पुलों को पूरी तरह नुकसान पहुंचाया. सबसे बड़ा हादसा दुडिया आयरन ब्रिज का ढहना है, जिससे सिलिगुड़ी-मिरिक मार्ग कट गया और यातायात ठप हो गया. तेजा नदी के जलस्तर में बढ़ोतरी से राष्ट्रीय राजमार्ग प्रभावित हुआ है.

IMD ने दी विशेष जानकारी 

मौसम विभाग (IMD) ने ऑरेंज और रेड अलर्ट जारी कर अगले 24 घंटों में और अधिक बारिश की चेतावनी दी है. इस विपदा में अब तक 13 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई लोग लापता हैं. मिरिक और सुखिया क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण कई घरों पर मलबा गिरा, जिससे सात से अधिक लोग दब गए. बालेसन नदी पर बने लोहे के पुल के बह जाने से नौ लोगों की मौत हुई. कालिम्पोंग में सड़कें टूट गईं, और सिक्किम में संचार व्यवस्था बाधित हो गई.

स्थानीय निवासी राजू बिस्ता ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए और इसे दिल दहला देने वाली तबाही बताया है. NH-10 पर बाढ़ का पानी बहने से वाहन फंस गए, बिजली-पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई और आर्थिक नुकसान करोड़ों में अनुमानित किया जा रहा है.

हेल्पलाइन नंबर जारी

स्थानीय प्रशासन ने तुरंत राहत और बचाव अभियान तेज कर दिया. दार्जिलिंग जिला मजिस्ट्रेट ने हेल्पलाइन नंबर (+91 91478 89078) जारी किया है, जहां फंसे पर्यटक संपर्क कर सकते हैं. एनडीआरएफ की दो टीमें मलबा हटाने और शवों की तलाश में जुटी हैं, लेकिन लगातार बारिश से रेस्क्यू कार्य में बाधा आ रही है. राज्य सरकार ने विशेष विमान सेवा की व्यवस्था की है, जबकि केंद्र सरकार ने राहत फंड जारी करने का आश्वासन दिया है. 

मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है. अब प्राथमिकता लापता लोगों की तलाश और सुरक्षित निकासी पर है. इस प्राकृतिक आपदा ने पहाड़ी क्षेत्रों की संवेदनशीलता को फिर से उजागर कर दिया है और प्रशासन तथा राहत एजेंसियों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा की है.