नोटों से भरा था कमरा, नहीं थी किसी को जाने की इजाजत, जस्टिस वर्मा केस में 10 गवाह आये सामने, किया बड़ा खुलासा

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच पैनल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के मामले में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.

X
Garima Singh

Justice Verma case: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच पैनल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के मामले में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. पैनल ने जस्टिस वर्मा के आचरण को 'अप्राकृतिक' करार देते हुए उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की है. जांच में पाया गया कि कई गवाहों ने उनके घर में नोटों का बड़ा ढेर देखा, लेकिन न तो पुलिस को सूचित किया गया और न ही न्यायिक अधिकारियों को जानकारी दी गई. 

पैनल ने 55 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें जस्टिस वर्मा की बेटी, दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस), और दिल्ली पुलिस के अधिकारी शामिल हैं. गवाहों ने स्टोर रूम में 500 रुपये के नोटों का "बड़ा ढेर" देखने की पुष्टि की, जिसमें कुछ नोट आधे जले हुए थे. एक गवाह ने कहा, "मैं इतनी बड़ी मात्रा में नकदी देखकर हैरान रह गया, मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा कुछ देखा था।" पैनल ने वीडियो और तस्वीरों जैसे दृश्य साक्ष्यों का भी विश्लेषण किया, जो घटना की गंभीरता को दर्शाते हैं. जांच में यह भी सामने आया कि स्टोर रूम, जहां नकदी रखी थी, पूरी तरह से जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में था. इसके बावजूद, घटना के बाद कमरा साफ कर दिया गया, और नोट 'गायब' हो गए.

गवाहों ने क्या बताया?

नकदी देखने वाले दस प्रमुख गवाहों में डीएफएस के अंकित सहवाग, प्रदीप कुमार, मनोज महलावत, भंवर सिंह, प्रवींद्र मलिक, सुमन कुमार, और दिल्ली पुलिस के राजेश कुमार, सुनील कुमार, रूप चंद, और उमेश मलिक शामिल हैं. ये अधिकारी आग लगने की सूचना पर सबसे पहले मौके पर पहुंचे थे. पैनल ने इनके बयानों को विश्वसनीय माना, जबकि जस्टिस वर्मा के घरेलू कर्मचारियों ने नकदी देखने से इनकार किया.

जस्टिस वर्मा का बचाव और पैनल की प्रतिक्रिया

जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि यह उनकी छवि खराब करने की 'साजिश' है, लेकिन पैनल ने इसे खारिज करते हुए कहा, "करेंसी नोटों को कई लोगों ने देखा और वास्तविक समय में रिकॉर्ड किया गया. यह अविश्वसनीय है कि उन्हें फंसाने के लिए उन्हें लगाया गया था." पैनल ने यह भी नोट किया कि जस्टिस वर्मा या उनके परिवार ने न तो पुलिस को सूचना दी और न ही उच्च न्यायालय या भारत के मुख्य न्यायाधीश को मामले से अवगत कराया। पैनल ने कहा, "ज्ञान की कमी का जज का दावा अविश्वसनीय है."

साक्ष्यों को नष्ट करने का आरोप

जांच में जस्टिस वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की और उनकी बेटी दीया वर्मा पर साक्ष्यों को नष्ट करने या घटनास्थल को साफ करने का संदेह जताया गया है. एक वरिष्ठ अग्निशमन अधिकारी ने बताया कि उन्हें मामले को दबाने के लिए कहा गया, क्योंकि "इसमें उच्च अधिकारी शामिल थे."