डीएनए में तबाही मचा रही है जहरीली हवा, जानें कैसे अंदर ही अंदर बदल रही है आपकी पूरी जैविक पहचान
नई रिसर्च ने साबित किया है कि दिल्ली NCR जैसी जगहों की जहरीली हवा सिर्फ फेफड़ों को खराब नहीं करती बल्कि हमारे डीएनए की संरचना तक बदल रही है. यह बदलाव शरीर को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लिए तैयार कर देता है.
दिल्ली NCR में प्रदूषण हर साल गंभीर संकट बनकर लौटता है. आंखों की जलन, खांसी और सांस फूलना जैसे लक्षण लोगों को दिखते तो जरूर हैं, लेकिन असली खतरा आंखों से दिखाई नहीं देता. हाल की एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च ने साफ कर दिया है कि हवा में मौजूद छोटे कण सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं बल्कि हमारे डीएनए की संरचना को भी बदल रहे हैं.
इस बदलाव का सबसे डरावना पहलू यह है कि यह शरीर के भीतर चुपचाप चलता रहता है और कई साल बाद गंभीर बीमारियां सामने आती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि प्रदूषित हवा में रहने वाले लोग भी बराबर जोखिम में हैं.
प्रदूषण से बदल रहा है आपका डीएनए
अनुसंधान में अलग अलग देशों के 870 लोगों की जांच की गई. इसमें पाया गया कि PM 2.5 जैसे छोटे कण जिनकी मोटाई एक बाल के सौवें हिस्से से भी कम होती है, लगातार फेफड़ों में जाकर डीएनए के उस हिस्से में बदलाव कर देते हैं जो कैंसर को रोकने का काम करता है.
सबसे हैरानी की बात यह रही कि जिन लोगों में यह परिवर्तन दिखाई दिया, उन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया था. कई लोग तो सेकेंड हैंड स्मोक से भी दूर थे. यानी सिर्फ प्रदूषित हवा में रहने से उनके फेफड़ों में वह बदलाव दिखा जो आमतौर पर लंबे समय तक सिगरेट पीने वालों में होता है.
कितना खतरनाक है यह बदलाव?
वैज्ञानिक बताते हैं कि यह जीन परिवर्तन कई सालों तक शरीर में सोया हुआ रूप ले सकता है. लेकिन लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने से शरीर में सूजन बढ़ती है. यही सूजन उन बदले हुए जीन को सक्रिय कर देती है और वे ट्यूमर बनने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं. यानी बीमारी धीरे धीरे बढ़ती है और व्यक्ति को कोई चेतावनी भी नहीं मिलती. इसीलिए फेफड़ों का कैंसर कई बार देर से पकड़ा जाता है.
प्रदूषण शरीर में क्या करता है
- PM 2.5 सीधे फेफड़ों में जाता है और खून में घुल जाता है
- लगातार सूजन पैदा होती है जिसके कारण इम्यून सिस्टम अत्यधिक सक्रिय रहता है
- ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस डीएनए को नुकसान पहुंचाता है
- शरीर की मरम्मत करने वाली प्रणाली कमजोर हो जाती है
- डीएनए में जमा हुए बदलाव धीरे धीरे ट्यूमर बनने का कारण बनते हैं
संक्षेप में, धूम्रपान न करने वाला व्यक्ति भी प्रदूषण के कारण उसी खतरे में आ सकता है.
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