मुंबई: तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी की कहानी रे और रूमी के इर्द गिर्द घूमती है. रे एक वेडिंग प्लानर है और रूमी एक लेखिका जो अपनी किताब के लिए पाठकों की तलाश में है. दोनों की मुलाकात क्रोएशिया की यात्रा के दौरान होती है. खूबसूरत लोकेशन और चमकदार फ्रेम्स के बीच फिल्म का पहला घंटा इनके प्यार में पड़ने की कोशिश में निकल जाता है.
समस्या तब आती है जब रूमी अपने बुजुर्ग पिता को अकेला छोड़कर शादी के बाद अमेरिका जाने के लिए तैयार नहीं होती. यहीं से फिल्म असली मुद्दे को छूने की कोशिश करती है. परिवार बनाम प्यार.
फिल्म का पहला हिस्सा देखने में बेहद आकर्षक है लेकिन भावनात्मक तौर पर कमजोर पड़ता है. रे और रूमी के बीच प्यार कब और कैसे पनपता है यह दर्शक ठीक से महसूस नहीं कर पाता. आज के दौर में सच्चे प्यार की तलाश का विचार फिल्म में सतही लगता है.
कार्तिक आर्यन अपने चिर परिचित अंदाज में सहज और आकर्षक दिखते हैं. उनका ह्यूमर और बॉडी लैंग्वेज उनके किरदार को पसंद करने लायक बनाती है. लेकिन प्रेम कहानी में सिर्फ एक अभिनेता का अच्छा होना काफी नहीं होता. अनन्या पांडे भावनात्मक और रोमांटिक दृश्यों में संघर्ष करती नजर आती हैं. उनके और कार्तिक के बीच केमिस्ट्री वह असर नहीं छोड़ पाती जो एक प्रेम कहानी के लिए जरूरी होती है.
फिल्म का दूसरा हिस्सा ज्यादा दिलचस्प हो जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह जैकी श्रॉफ और नीना गुप्ता की एंट्री है. जैकी श्रॉफ एक रिटायर्ड आर्मी मैन के रूप में सादगी और गहराई दोनों लाते हैं. उनके और कार्तिक के बीच के दृश्य फिल्म की जान बन जाते हैं.
यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्तिक की केमिस्ट्री अनन्या से ज्यादा जैकी श्रॉफ के साथ बेहतर लगती है. नीना गुप्ता रे की मां के रोल में फिल्म को भावनात्मक मजबूती देती हैं. सपना सैंड का किरदार भी एक खास सीन में मुस्कान लाने में कामयाब रहता है.
फिल्म का मुख्य संदेश परिवार से प्यार और समझौते पर टिका है. लेकिन इसका निष्कर्ष बहुत जल्दबाजी में दिखाया गया है. रे का शादी के बाद पत्नी के घर रहने का फैसला आखिरी पंद्रह मिनट में निपटा दिया जाता है.
अगर दूसरा हाफ इस नई जिंदगी में रे के संघर्ष और बदलाव पर ज्यादा फोकस करता तो फिल्म ज्यादा असरदार बन सकती थी. घर जमाई का विचार कोई नया नहीं है लेकिन इसे गहराई से दिखाने का मौका फिल्म गंवा देती है.