थ्री इडियट्स से संजू तक... बॉलीवुड का वह डायरेक्टर जिसकी एक भी फिल्म नहीं हुई फ्लॉप, फॉलो करते हैं ये मंत्र
राजकुमार हिरानी बॉलीवुड के उन चुनिंदा डायरेक्टर में शामिल हैं जिनकी एक भी फिल्म फ्लॉप नहीं हुई. चार नेशनल अवॉर्ड और ग्यारह फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुके हिरानी ने अपनी फिल्मों से कॉलेज लाइफ, दोस्ती, समाज और भावनाओं को बेहद खूबसूरती से पर्दे पर उतारा.
मुंबई: राजकुमार हिरानी का जन्म 20 नवंबर 1962 को महाराष्ट्र के नागपुर में एक सिंधी परिवार में हुआ है. उनके पिता सुरेश भारत पाक विभाजन के समय केवल चौदह साल की उम्र में भारत आए थे. परिवार ने नागपुर में एक टाइपिंग संस्थान शुरू किया जिसमें आरंभ में केवल दो टाइपराइटर थे. कुछ ही समय में यह संस्थान इतना फेमस हुआ कि हर रोज सोलह बैचों में हजार से अधिक छात्रों को ट्रेनिंग दी जाती थी. हालांकि कंप्यूटर आने के बाद यह व्यवसाय बंद हो गया.
हिरानी के माता पिता चाहते थे कि उनका बेटा चार्टर्ड अकाउंटेंट बने. लेकिन राजकुमार का झुकाव रंगमंच और अभिनय की ओर था. कॉलेज के दिनों में वे हिंदी थिएटर में काफी सक्रिय रहे. बेटे का जुनून देखकर माता पिता ने उन्हें मुंबई के एक एक्टिंग स्कूल में भेजा लेकिन वह वहां की पढ़ाई में सहज नहीं हो पाए और वापस लौट आए.
एफटीआईआई में मिला असली रास्ता
इसके बाद हिरानी ने पुणे के भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान में डायरेक्शन कोर्स के लिए आवेदन किया. उम्मीदवार ज्यादा होने की वजह से उन्हें चयन की संभावना कम लगी और उन्होंने एडिटिंग कोर्स में दाखिला ले लिया. यही फैसला आगे चलकर उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बना.
पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में फिल्म संपादक बनने का संघर्ष शुरू किया. उन्हें काम नहीं मिल पा रहा था और मजबूरी में विज्ञापन जगत का रुख किया. यहां उन्होंने विज्ञापन फिल्मों का निर्देशन किया और कई विज्ञापनों में खुद भी दिखे.
बी टाउन में एंट्री और मिला पहला बड़ा मौका
राजकुमार हिरानी के करियर का मोड़ तब आया जब डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें 1942 ए लव स्टोरी के प्रोमो और ट्रेलर पर काम करने के लिए बुलाया. इसके बाद वह मिशन कश्मीर के एडिटर बने और फिल्म जगत में उनकी पहचान बन गई.
फिल्म डायरेक्टर के रूप में उनका पहला मौका तब आया जब 2003 में मुन्नाभाई एमबीबीएस रिलीज हुई. इस फिल्म ने सिर्फ विनोद चोपड़ा के बैनर को ही नहीं बल्कि राजकुमार हिरानी को भी नया रास्ता दिखाया. उनकी निर्देशन शैली हल्की फुल्की कॉमेडी में समाजिक संदेशों को पिरोने की कला का अनोखा मिश्रण थी.
एक से बढ़कर एक ब्लॉकबस्टर
लोकेशन से लेकर किरदारों की मासूमियत तक हिरानी की फिल्में दर्शकों को दिल से जोड़ लेती हैं. लगे रहो मुन्ना भाई ने उन्हें और भी ऊंचाई दी. इसके बाद थ्री इडियट्स आई जिसने भारत में शिक्षा व्यवस्था पर सवालों की ऐसी बहस छेड़ी जैसी पहले कभी नहीं देखी गई थी. यह फिल्म आज भी हर युवा के दिल के बहुत करीब है.
फिर आई पीके जो समाज और आस्था पर एक व्यंग्यात्मक फिल्म थी. इसके बाद संजू ने बॉक्स ऑफिस पर धमाका किया और संजय दत्त की जिंदगी को एक अलग नजरिए से प्रस्तुत किया. इन सभी फिल्मों ने साबित कर दिया कि हिरानी सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि संदेश भी देता है.
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