Nawazuddin Siddiqui: ‘जब जिंदा थे तब कदर नहीं की’, नवाजुद्दीन सिद्दीकी का बॉलीवुड पर तंज, फिल्म मेकर्स पर क्यों साधा निशाना
Nawazuddin Siddiqui: मशहूर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर तीखा प्रहार किया है. उन्होंने कहा कि ओम पुरी, इरफान खान, नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर और मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गज सितारों को कभी भी बिग बजट फिल्मों में मेन रोल का मौका नहीं दिया गया, भले ही दर्शक उन्हें बड़े पर्दे पर देखने के लिए बेताब थे.
Nawazuddin Siddiqui: अपनी बेबाकी और शानदार अभिनय के लिए मशहूर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर तीखा प्रहार किया है. उन्होंने कहा कि ओम पुरी, इरफान खान, नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर और मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गज सितारों को कभी भी बिग बजट फिल्मों में मेन रोल का मौका नहीं दिया गया, भले ही दर्शक उन्हें बड़े पर्दे पर देखने के लिए बेताब थे. नवाजुद्दीन ने बॉलीवुड के इस रवैये को दुखद और अन्यायपूर्ण करार दिया.
अपने एक हालिया इंटरव्यू में नवाजुद्दीन ने हिंदी सिनेमा के कुछ सबसे प्रतिभाशाली एक्टर्स का जिक्र करते हुए कहा, 'नसीर साहब, ओम पुरी, पंकज कपूर, इरफान खान और मनोज बाजपेयी - ये हमारी इंडस्ट्री के सबसे बेहतरीन हैं. लेकिन अफसोस, किसी ने भी उनके साथ मुख्य भूमिका में बिग बजट फिल्म बनाने की नहीं सोची. भारत का दर्शक उन्हें स्क्रीन पर देखने को बेकरार था, फिर भी उनकी प्रतिभा को छोटे और मध्यम बजट की फिल्मों तक सीमित रखा गया.'
नवाजुद्दीन सिद्दीकी का बॉलीवुड पर तंज
नवाजुद्दीन ने भावुक होते हुए कहा, 'ये अभिनेता जनता के हीरो थे, लेकिन उनकी फिल्में जनता तक पूरी तरह पहुंची ही नहीं. यह मुझे बहुत दुख देता है.' उन्होंने खास तौर पर ओम पुरी और इरफान खान का जिक्र किया, जिनकी मृत्यु के बाद उनकी तारीफ तो बहुत हुई, लेकिन उनके जीवित रहते उनकी कदर नहीं की गई. नवाजुद्दीन ने तंज कसते हुए कहा, 'आज सब इरफान-इरफान चिल्लाते हैं. जब जिंदा थे, तब क्या किसी ने उनके साथ 20-25 करोड़ की फिल्म बनाई? नहीं!'
समानांतर सिनेमा के सितारे
80 और 90 के दशक में ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह और पंकज कपूर समानांतर सिनेमा के प्रतीक थे. ‘आक्रोश’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘मंडी’, और ‘जाने भी दो यारों’ जैसी फिल्मों में उनकी अभिनय क्षमता ने उन्हें आलोचकों और दर्शकों का प्रिय बनाया, लेकिन व्यावसायिक सिनेमा में उन्हें मुख्य भूमिकाएं शायद ही मिलीं. ज्यादातर बड़े बजट की फिल्मों में वे सहायक किरदारों तक सीमित रहे.
इसी तरह, इरफान खान ने ‘हासिल’, ‘मकबूल’, और ‘पान सिंह तोमर’ जैसी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी, लेकिन बिग बजट मसाला फिल्मों में उनकी मौजूदगी गौण रही. मनोज बाजपेयी भी ‘शूल’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘सत्या’ जैसी मध्यम बजट की फिल्मों के लिए जाने गए, लेकिन बड़े बजट की फिल्मों में उन्हें सहायक भूमिकाएं ही मिलीं.
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