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क्या देवी-देवताओं के नाम पर चुनाव में मांगे जा सकते हैं वोट? नेताओं के लिए नियम जानना बहुत जरूरी है

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद भी बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ऐसी गलतियां करते हैं, जिन पर चुनाव आयोग एक्शन ले सकता है. अगर आप कहीं भी इन नियमों का उल्लंघन होते देखें तो चुनाव आयोग को इसकी सूचना दे सकते हैं.

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Abhishek Shukla
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Courtesy: India Daily Live

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अयोध्या के राम मंदिर और रामलला के नाम पर वोट मांगने की शिकायत अब कोर्ट तक पहुंच गई है. इसे लेकर आनंद एस जोंधले नाम के एक शख्स ने हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि पीएम मोदी के चुनाव लड़ने पर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया जाए. याचिका में चुनाव आयोग की ओर से तय की गई आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का हवाला दिया गया है.

लोकसभा चुनाव 2024 में राम मंदिर और अयोध्या का जिक्र बार-बार हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन की पार्टियां राम मंदिर और अयोध्या का जिक्र करके कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों को घेर भी रही हैं. विपक्षी पार्टियों के नेताओं को मटन और मांसाहार पर भी तंज कसा जा रहा है. उन्हें सीजनल हिंदू कहा जा रहा है. 

ऐसे में याचिकाकर्ता का कहना है कि भगवान और पूजा स्थल के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वोट मांग रहे हैं. यह आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन है. याचिका में पीलीभीत की एक चुनावी रैली का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर सवाल उठाए गए हैं. क्या चुनावों में भगवान और पूजा स्थल का नाम लेकर वोट मांगा जा सकता है, आइए जानते हैं.

क्या भगवान के नाम पर मांग सकते हैं वोट?

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के वकील विशाल अरुण मिश्रा बताते हैं कि मंदिर और भगवान के नाम पर वोट मांगे नहीं जा सकते. वोट जाति और धर्म के नाम पर भी नहीं मांगे जा सकते हैं. उन्होंने आदर्श आचार संहिता (राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए) और अन्य संबंधित दिशा निर्देशों का जिक्र किया और नियमावली बताई.

उन्होंने कहा, आचार संहिता के अध्याय 2.3.1 की नियमावली (I) कहती है, 'किसी भी गतिविधि में संलिप्तता, जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ाए या आपस में घृणा पैदा करे, या अलग-अलग जातियों और समुदायों, चाहे वे किसी भी धर्म या भाषा के हों, के बीच तनाव पैदा करे, लोक प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 12 (3क) के अधीन भ्रष्ट आचारण है.'

आचार संहिता के अध्याय 2.3.1 की नियमावली (II) कहती है, 'मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों या अन्य पूजन स्थलों का मंच निर्वाचन, प्रचार-प्रसार के रूप में इस्तेमाल, मत प्राप्त करने के लिए जाति या संप्रदाय के आधार पर अपील करना और दोनों ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (3) और धारा 125 के अधीन क्रमश: भ्रष्ट आचरण और निर्वाचन अपराध है.'
 
क्या इस चुनाव में जमकर हो रहा आचार संहिता का उल्लंघन?

एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि अगर ये नियम विधि द्वारा प्रवर्तनीय होते आधे से ज्यादा उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द हो जाती. उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग की सबसे बड़ी खामी है कि यह आयोग कोई कड़े फैसले नहीं सकता है. आदर्श संहिता की कानूनी मान्यता नहीं है. भारतीय दंड संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार इसके दिशा निर्देश तय किए गए हैं. आदर्श आचार संहिता में केवल इन दोनों अधिनियमों की धाराओं पर मिसकंडक्ट को लेकर नियम तय किए गए हैं. उन्हीं के आधार पर चुनाव आयोग एक्शन लेता है. 

सुप्रीम कोर्ट के ही अधिवक्ता शुभम गुप्ता बताते हैं अब चुनाव आयोग ही यह तय कर सकता है कि मंदिर का नाम लेना आचार संहिता का उल्लंघन है या नहीं. चुनाव आयोग के अलावा कोर्ट भी इस पर एक्शन ले सकता है. ऐसा बेहद दुर्लभ है कि चुनाव आयोग कोई कड़े फैसले ले. अगर हम नियमावली की बात करें तो चुनावी जनसभाओं में मंदिर, मस्जिद और देवताओं का जिक्र करना, आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन है.

एडवोकेट सौरभ शर्मा के मुताबिक जन प्रतिनिधि कानून के तहत अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसके चुनाव लड़ने पर बैन, अपराध में शामिल होने पर जेल भी हो सकती है. यह जेल 3 साल तक हो सकती है. चुनाव में देवी-देवता और मंदिर का नाम लेकर प्रचार करने पर जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 123 (3), 123 (3ए) और 125 भी प्रभावी होता है. धारा 123 (3ए) कहती है कि धर्म, जाति और समुदाय के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण है.