Jharkhand Rashmi Teacher Story: माता-पिता के बाद हमारे जीवन में अगर किसी का सबसे बड़ा योगदान होता है तो वो हैं हमारे टीचर. वो हमारे जीवन को किताब से लेकर सामाजिक और नैतिक ज्ञान से सींचते हैं, ताकी हम एक बेहतर इंसान बनें. कहा जाता है कि एक अच्छा शिक्षक वो नहीं जो क्लास में आते हैं और केवल लिखी-लिखाई बात पढ़ाकर चले जाते हैं. चाहे बच्चे को समझ आए या ना आए. एक गुरु हर मुमकिन कोशिश करता है कि उनके छात्र पढ़ाई के करीब आएं ना की दूर भागे. इसके लिए जरुरी है कि पढ़ाई को आसान और रोचक दोनों बनाया जाए.
झारखंड की रश्मि टीचर ने भी यही किया. उन्होनें वो कारनामा कर दिखाया जिनका यूनिसेफ भी कायल हो गया. झारखंड की रश्मि टीचर ने भी इसी सोच को अपनाया और कुछ ऐसा कर दिखाया, जिससे आज पूरा देश ही नहीं बल्की पूरी दुनिया उनकी तारीफ कर रहा है.
रश्मि बिरहोर, जो कभी आदिवासी समुदाय से आई एक साधारण लड़की थीं, आज शिक्षा जगत में मिसाल बन चुकी हैं. उनकी मेहनत और जुनून ने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली, बल्कि समाज को भी नई दिशा दी है.
जब उनकी उपलब्धियों की खबर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंची, तो रश्मि को राजभवन बुलाकर विशेष सम्मान दिया गया. यह पल न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए गर्व का क्षण था.
रश्मि की अनोखी पहल को यूनिसेफ ने भी सराहा और इसे मॉडल के तौर पर पेश किया. उनकी यह सोच अब और भी जगहों पर लागू करने की कोशिश की जा रही है. आज रश्मि सिर्फ एक टीचर नहीं, बल्कि समाज के लिए रोल मॉडल हैं. उनका सफर यह संदेश देता है कि अगर इरादे पक्के हों, तो कोई भी बदलाव लाया जा सकता है.
This #TeachersDay, we celebrate Rashmi from Jharkhand — a teacher bringing learning alive in children’s own languages.
— UNICEF India (@UNICEFIndia) September 5, 2025
Her classrooms are about more than lessons — they’re about inclusion, identity, and joy in learning.#ForEveryChild, education pic.twitter.com/0e3xx4M0H6
रश्मि बताती हैं कि जब वो पहली बार इस विद्यालय में पढ़ाने पहुंची तो उन्हें पेरेंट्स और शिक्षकों के बीच अच्छे संबंध नहीं थे. बाद में उन्हें पता चला कि दोनों के बीच भाषा की दीवार खड़ी है. वहां के लोग उनकी भाषा ही समझ नहीं पा रहे थे. भाषा बच्चों की पढ़ाई में भी रुकावट पैदा कर रही थी. फिर रश्मि ने इसका जोरदार तोड़ निकाला. उन्होनें इसे ही अपनी ताकत बना ली. बहु भाषा शिक्षण पद्धति की ट्रेनिंग हुई. जिसमें ये बताया गया कि किस तरह से उनकी मातृभाषा का इस्तेमाल आप उनकी पढ़ाई में कर सकते हैं. ताकी बच्चें क्लास और किताब को बेहतरीन और आसान तरीके से समझ पाएं. उन्होनें बताया कि पटिया को हिंदी में चटाई कहते हैं. टिचर ने इसे बहुभाषीय शिक्षण पद्धति से जोड़कर बच्चों को चटाई बनाना सिखाया.इससे बच्चों को न सिर्फ किताबें समझने में मदद मिली, बल्कि पढ़ाई उनके लिए रोचक भी हो गई.इससे बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ संस्कृति से भी जुड़े.