Gandhi Jayanti 2025: गुजरात से लंदन तक का सफर; बापू कैसे बने बैरिस्टर बाबू, हर लॉ स्टूडेंट के लिए प्रेरणा
Gandhi Jayanti 2025: महात्मा गांधी की शिक्षा की शुरुआत उनके जन्मस्थान पोरबंदर के एक स्थानीय स्कूल से हुई थी. शुरुआती दौर में वह पढ़ाई में सामान्य छात्र थे, लेकिन उनकी रुचि धीरे-धीरे गणित, भूगोल और इतिहास जैसे विषयों में बढ़ने लगी.
Gandhi Jayanti 2025: आज जो हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की देन है. उन्होनें भारत मां की आजादी में बड़ा योगदान दिया है. वो न केवल राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के लिए याद किए जाते हैं, बल्कि उनकी शिक्षा यात्रा भी बेहद प्रेरणादायक रही है. 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे गांधी जी ने अपनी पढ़ाई छोटे-से कस्बे से शुरू की थी. उनके जीवन की सादगी और अनुशासन ने उन्हें शुरू से ही शिक्षा के महत्व को समझने में मदद की. गांधीजी के लिए पढ़ाई सिर्फ ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और समाज सुधार का माध्यम भी थी.
महात्मा गांधी ने बचपन में राजकोट और भावनगर जैसे स्थानों पर पढ़ाई की, लेकिन उनका सफर यहीं नहीं रुका. वे उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गए और वहां से लॉ की डिग्री हासिल की. यही शिक्षा आगे चलकर उनकी सोच, व्यक्तित्व और संघर्ष की दिशा तय करने वाली बनी. लंदन में रहते हुए गांधीजी ने सिर्फ कानून की पढ़ाई नहीं की, बल्कि सादगी, अनुशासन और आत्मनियंत्रण को भी अपने जीवन में गहराई से उतारा.
पोरबंदर से राजकोट तक की प्रारंभिक शिक्षा
महात्मा गांधी की शिक्षा की शुरुआत उनके जन्मस्थान पोरबंदर के एक स्थानीय स्कूल से हुई थी. शुरुआती दौर में वह पढ़ाई में सामान्य छात्र थे, लेकिन उनकी रुचि धीरे-धीरे गणित, भूगोल और इतिहास जैसे विषयों में बढ़ने लगी. इसके बाद उनके पिता की नौकरी के चलते परिवार राजकोट चला गया. यहां गांधीजी ने अल्फ्रेड हाई स्कूल से अपनी पढ़ाई जारी रखी और 10वीं की परीक्षा पास की. यह दौर उनके लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यहीं से उनकी शिक्षा की नींव मजबूत हुई और समाज व संस्कृति को समझने की शुरुआत हुई.
भावनगर कॉलेज से अधूरी पढ़ाई
10वीं पास करने के बाद गांधीजी ने 1888 में भावनगर के समलदास कॉलेज में एडमिशन लिया. लेकिन यहां उन्हें पढ़ाई में मन नहीं लगा और वे कॉलेज छोड़कर घर लौट आए. इस समय गांधीजी के जीवन में दुविधा का दौर था. वे सोच रहे थे कि आगे कौन-सा रास्ता अपनाया जाए. इसी दौरान उनके मन में कानून पढ़ने का विचार पक्का होने लगा. उन्हें लगा कि कानून की पढ़ाई से न केवल उनका करियर बनेगा, बल्कि वे समाज के लिए भी कुछ कर पाएंगे. यह निर्णय उनके जीवन को नई दिशा देने वाला साबित हुआ.
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई
गांधीजी का सपना विदेश जाकर पढ़ाई करने का था. परिवार की प्रारंभिक अनिच्छा के बावजूद आखिरकार उन्हें अनुमति मिल गई और वे 1888 में इंग्लैंड पहुंचे. उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) में लॉ की पढ़ाई शुरू की. यहां तीन साल तक उन्होंने कानून की पढ़ाई की और इस दौरान अंग्रेजी संस्कृति से भी रूबरू हुए. हालांकि, विदेश की चमक-दमक और नए माहौल में भी गांधीजी ने अपनी भारतीय परंपराओं और सादगी को बनाए रखा. उन्होंने शाकाहार और सादगीपूर्ण जीवन को अपनाए रखा, जो उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत थी.
बैरिस्टर बनने से लेकर भारत लौटने तक का सफर
कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद गांधीजी ने इंग्लैंड के इनर टेम्पल, इन्स ऑफ कोर्ट स्कूल ऑफ लॉ में एडमिशन लिया. वर्ष 1891 में उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की और इंग्लैंड हाईकोर्ट में एनरॉल भी हो गए. हालांकि, वहां प्रैक्टिस करने के बजाय उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया. शुरुआत में उन्होंने राजकोट में प्रैक्टिस की, लेकिन बाद में दक्षिण अफ्रीका चले गए. यहीं से उनकी असली पहचान बनी और वे धीरे-धीरे स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में उभरे.