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India Daily

दिवाली से पहले देश में चांदी की भारी किल्लत, जानें क्या हुआ ऐसा कि करोड़ों लोगों का खरीददारी का टूट सकता है सपना

Diwali Silver Demand: दिवाली से ठीक पहले देश में चांदी की भारी कमी देखने को मिल रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में भारतीय बाजार में चांदी 10% तक के प्रीमियम पर बिक रही है. निवेशकों की बढ़ती खरीद और सीमित वैश्विक आपूर्ति के चलते यह संकट गहराता जा रहा है.

Diwali Silver Demand
Courtesy: Credit: AI

Diwali Silver Demand: दिवाली में लोग अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों को उपहार देते हैं. दिवाली से ठीक पहले, देश में चांदी की भारी कमी देखी जा रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में भारतीय बाजार में चांदी 10% तक के प्रीमियम पर बिक रही है. निवेशकों की बढ़ती खरीदारी और सीमित वैश्विक आपूर्ति के कारण यह संकट और भी बढ़ गया है. यही कारण है कि कई चांदी आधारित एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ETFs) ने नए निवेश पर अस्थायी रोक लगा दी है.

चांदी की कमी केवल भारत में नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बनी हुई है. लगातार चार वर्षों से वैश्विक मांग, उत्पादन से अधिक है, जिसके चलते पहले के वर्षों में जमा अधिशेष खत्म हो चुका है. वर्ष 2025 में भी यह स्थिति सुधरती नहीं दिख रही. विशेषज्ञों का कहना है कि चांदी का लगभग 70% उत्पादन अन्य धातुओं जैसे जिंक, सीसा और तांबा की खदानों से उप-उत्पाद (by-product) के रूप में होता है. इस कारण, भले ही दाम बढ़ जाएं, उत्पादन तेजी से बढ़ाना संभव नहीं होता.

इसी बीच सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी उच्च-तकनीकी उद्योगों में चांदी की खपत लगातार बढ़ रही है. नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में इसकी अहम भूमिका ने औद्योगिक मांग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है.

निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी से बढ़ा दबाव

चांदी में निवेश करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है. सिक्के, बार, और चांदी-समर्थित ETFs में भारी निवेश हुआ है. इसने बाजार में भौतिक चांदी की मांग को और बढ़ा दिया है, जिससे आपूर्ति पर दबाव बढ़ा और दाम रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गए. स्थिति को और कठिन बना दिया है अमेरिका में चांदी की बढ़ती मांग ने. सितंबर में इसे अमेरिका की "क्रिटिकल मिनरल्स लिस्ट" के मसौदे में शामिल किया गया, जिसके बाद अमेरिका में चांदी की शिपमेंट में उछाल आया.

भारत पर सबसे गहरा असर

भारत दुनिया का सबसे बड़ा चांदी उपभोक्ता देश है. यहां चांदी का उपयोग न केवल गहनों और बर्तनों में होता है, बल्कि सिक्के, बार, सौर पैनल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भी इसका प्रयोग होता है. भारत अपनी कुल जरूरत का 80% से अधिक हिस्सा आयात से पूरा करता है.

हालांकि, इस साल के पहले आठ महीनों में चांदी का आयात 42% घटकर केवल 3,302 टन रह गया है. दूसरी ओर, निवेश मांग विशेषकर सिल्वर ETFs में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. 2024 में जो अधिशेष आयात हुआ था, वह इस बढ़ी हुई मांग में खप चुका है. परिणामस्वरूप अब अतिरिक्त आयात की जरूरत है, लेकिन वैश्विक आपूर्ति सीमित है.

आयात क्यों नहीं बढ़ा पा रहा भारत?

सामान्य परिस्थितियों में जब घरेलू बाजार में चांदी ऊंचे दाम पर बिकती है, तो बैंक और सर्राफा आयातक इसका फायदा उठाने के लिए आयात बढ़ा देते हैं. हालांकि, इस बार वैश्विक आपूर्ति कम हो गई है. प्रमुख उत्पादक देशों में खनन में गिरावट आई है, और औद्योगिक मांग बढ़ी है. इसके अलावा, लंदन जैसे प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में लीज दरें भौतिक चांदी उधार लेने की लागत 30% से ज्यादा बढ़ गई हैं. इससे बैंकों और आयातकों के लिए चांदी की उपलब्धता बेहद मुश्किल हो गई है.

ETF ने क्यों रोकी नई सदस्यता?

सितंबर में चांदी आधारित ETFs में 53.42 अरब रुपये की रिकॉर्ड इनफ्लो दर्ज हुई. नियमानुसार, ऐसे फंड्स को उतनी ही मात्रा में भौतिक चांदी खरीदनी होती है. लेकिन जब फंड हाउसों ने हाल ही में चांदी खरीदने की कोशिश की, तो उन्हें भारी प्रीमियम देना पड़ा. निवेशकों को अत्यधिक दाम चुकाने से बचाने के लिए फंड्स ने फिलहाल नई सदस्यता रोक दी है.

बाजार में मचा हड़कंप

इस कमी के कारण चांदी के बर्तन और आभूषण निर्माता उत्पादन बढ़ाने में असमर्थ हैं. इस बीच, दिवाली के लोकप्रिय उपहार, सिक्के और बार, रिकॉर्ड कीमतों पर बिक रहे हैं. पुराने निवेशक भी अपनी पुरानी चांदी बेचने से हिचकिचा रहे हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि कीमतें और बढ़ेंगी, जिससे स्क्रैप की आपूर्ति और कम हो जाएगी. त्योहारी सीज़न में चांदी का यह संकट उपभोक्ताओं और उद्योग दोनों के लिए एक चुनौती बन गया है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि वैश्विक आपूर्ति बढ़ने तक चांदी की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी.