अडाणी ग्रुप ने श्रीलंका के उत्तरी इलाके में प्रस्तावित 484 मेगावाट (MW) के पवन ऊर्जा परियोजना से बाहर जाने का फैसला लिया है. इस परियोजना को लेकर श्रीलंकाई सरकार ने हाल ही में प्रस्तावों में संशोधन करने का संकेत दिया था, जिसके चलते अडाणी ग्रुप ने अपनी स्थिति साफ करते हुए श्रीलंका के बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट (BOI) को एक पत्र भेजा और कहा कि वह "आदरपूर्वक" इस परियोजना से बाहर निकल रहे हैं.
नए समीकरण और सरकार का रुख
अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड ने कहा कि कंपनी के अधिकारियों ने श्रीलंका के ऊर्जा मंत्रालय और Ceylon Electricity Board (CEB) के साथ हाल ही में चर्चा की थी, जिसमें यह बताया गया कि सरकार नई समितियों का गठन करेगी, जो परियोजना के प्रस्ताव को फिर से परखेंगी. इस मुद्दे को लेकर कंपनी ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में बैठक की और यह निर्णय लिया कि वह इस परियोजना से बाहर निकल जाएगी, भले ही वह श्रीलंकाई सरकार के संप्रभु अधिकारों का सम्मान करती है.
श्रीलंका के राष्ट्रपति का रुख और चुनावी वादा
यह परियोजना पिछले कुछ समय से विवादों में घिरी हुई थी, खासकर जब से श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने सितंबर 2024 में सत्ता संभाली. उन्होंने चुनावों से पहले यह वादा किया था कि वह इस "भ्रष्ट" परियोजना को रद्द करेंगे, जिसकी विपक्षी दलों और कुछ पर्यावरणीय संगठनों द्वारा आलोचना की जा रही थी.
परियोजना की आलोचना और पर्यावरणीय चिंताएँ: अडाणी ग्रीन द्वारा प्रस्तावित यह पवन ऊर्जा परियोजना अपने प्रस्तावित स्थान के आसपास के पक्षी प्रवास मार्ग और स्थानीय मछली पकड़ने वाली समुदायों पर प्रभाव डालने के कारण आलोचनाओं का शिकार हो गई थी. हालांकि, इस परियोजना के लिए अडाणी ग्रुप ने प्री-डेवलपमेंटल गतिविधियों पर 5 मिलियन डॉलर खर्च किए थे, जिसमें भूमि की व्यवस्था और क्लीयरेंस प्राप्त करना शामिल था.
निवेश और भविष्य की योजनाएं
इस परियोजना को लेकर 20 वर्षों के लिए एक पावर पर्चेज एग्रीमेंट (PPA) भी पहले मंजूर किया गया था, जिसमें अडाणी ग्रुप का अनुमानित निवेश 1 बिलियन डॉलर था. परियोजना के तहत, मन्नार और पूनरीयन क्षेत्रों में पवन ऊर्जा संयंत्र और संबंधित ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण होना था. हालांकि, अब अडाणी ग्रुप ने इसे स्थगित करने का निर्णय लिया है.
अडाणी ग्रुप की प्रतिक्रिया
अडाणी ग्रीन के पत्र में कहा गया, "हम इस परियोजना से बाहर निकलते हुए श्रीलंकाई सरकार से यह पुष्टि करते हैं कि यदि भविष्य में कोई विकास अवसर आता है, तो हम हमेशा श्रीलंकाई सरकार को हमारे साथ सहयोग करने के लिए तैयार रहेंगे." अडाणी ग्रुप ने इस स्थिति को लेकर खुलकर अपनी स्थिति स्पष्ट की है और भविष्य में अन्य विकास कार्यों में अपनी सहभागिता की संभावना को खोला है.
अन्य विवाद और अंतर्राष्ट्रीय दबाव
अडाणी ग्रुप के लिए यह एक कठिन समय है, क्योंकि इससे पहले दिसंबर में अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड ने 553 मिलियन डॉलर के एक ऋण के लिए अपनी अपील वापस ले ली थी, जिसे वह यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (DFC) से प्राप्त करना चाहता था. इसके अलावा, नवंबर में अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी और अन्य छह व्यक्तियों पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने भारतीय सरकारी अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने की कोशिश की थी, जिससे एक सौर परियोजना के लिए पावर पर्चेज एग्रीमेंट को तेजी से पास कराया जा सके.
केन्या और श्रीलंका में रद्द हुए समझौते
इसके पहले केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने अडाणी ग्रुप के साथ दो बड़े समझौतों को रद्द कर दिया था, जो मुख्य हवाईअड्डे के उन्नयन और पावर ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण से संबंधित थे. इस प्रकार, अडाणी ग्रुप के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समस्याएं बढ़ रही हैं, और अब श्रीलंका से बाहर निकलने का फैसला एक और बड़ा झटका साबित हो सकता है.