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Mahakumbh 2025: पूर्णिमा से ही क्यों होता है महाकुंभ का आगाज? क्या है इसके पीछे की कहानी

Mahakumbh 2025: महाकुंभ, जो हर 144 साल में एक बार होता है, अब प्रयागराज में शुरू हो चुका है. इस महापर्व में दुनिया भर से लोग आते हैं और शाही स्नान जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं. इस दौरान कल्पवास भी होता है, जिसमें भक्त 40-44 दिनों तक साधारण और तपस्वी जीवन जीते हैं.

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Edited By: Princy Sharma
Mahakumbh 2025
Courtesy: Pinterest

Mahakumbh 2025: महाकुंभ, भारत के प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सवों में से एक है. 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो गई है.  यह महाकुंभ खास रूप से हर धर्म, जाति और देश के लोगों को एक साथ लाकर आध्यात्मिकता की शक्ति का अनुभव कराता है. इस महाकुंभ का मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व को एक साथ लाकर एकता और शांति का संदेश देना है. 

महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है और यह चार प्रमुख स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित किया जाता है. इन स्थानों का चयन ग्रहों की स्थिति के अनुसार किया जाता है, जो इस आयोजन को और भी विशेष बनाता है. कुंभ मेला का इतिहास बहुत दिलचस्प है. इसे समुद्र मंथन से जुड़ा माना जाता है, जहां अमृत कलश के गिरने के बाद भारत के चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थी. ये चार स्थान अब कुंभ मेला के प्रमुख आयोजन स्थल बनाए गए हैं.

शाही स्नान 

महाकुंभ का सबसे खास और महत्वपूर्ण हिस्सा है शाही स्नान, जो पवित्र नदियों में किया जाता है. इस दिन स्नान करना किसी भक्त के लिए आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का कारण बनता है. शाही स्नान के दिन साधना (ध्यान और पूजा) करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है.  2025 में, शाही स्नान 6 अलग-अलग तिथियों पर होगा, जो 14 जनवरी, मकर संक्रांति के दिन शुरू होगा. शाही स्नान की शुरुआत एक भव्य अखाड़ा यात्रा से होती है, जिसमें सबसे पहले साधु-संत और नागा साधु त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं. इसके बाद भक्तगण भी अपनी पूजा और स्नान के लिए आते हैं. नागा साधु, जो अपने कठिन जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध हैं, इस यात्रा का नेतृत्व करते हैं और भक्तों के लिए मार्ग खोलते हैं ताकि वे इस पवित्र स्नान में भाग ले सकें.

पौष पूर्णिमा का महत्व

महाकुंभ मेला और पौष पूर्णिमा के बीच गहरा संबंध है. महाकुंभ की शुरुआत हर साल पौष पूर्णिमा के दिन होती है, जो हिन्दू कैलेंडर के पौष महीने की पूर्णिमा तिथि होती है. चाहे 2025 का महाकुंभ हो या 2013 का, दोनों ही मेलों की शुरुआत पौष पूर्णिमा के दिन होती है.

विशेषज्ञों और बुजुर्गों के अनुसार, पौष पूर्णिमा के दिन ग्रहों की स्थिति से पूजा और साधना के आध्यात्मिक प्रभाव में वृद्धि होती है. कई श्रद्धालु इस दिन से अपने कल्पवास* की शुरुआत करते हैं, जो एक महीने का गहरा साधना और तप होता है.

कल्पवास की परंपरा

महाकुंभ में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए 'कल्पवास' की परंपरा भी है. कल्पवास में शामिल लोग पूरे 40-44 दिन तक साधना करते हैं, दिनभर ध्यान और पूजा करते हैं और साधारण जीवन जीते हैं. इसके साथ ही, महाकुंभ के दौरान 'शाही स्नान' एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है, जिसमें लाखों लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं और आत्मिक शुद्धि की प्राप्ति करते हैं.

इस बार महाकुंभ में कुछ खास भी हो रहा है. 2025 के महाकुंभ में एक विदेशी महिला, योगमाता केइको ऐकावा, जो जापान से हैं, महाकुंभ में शामिल हो रही हैं. इसके अलावा, स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल ने भी इस बार महाकुंभ में कल्पवासी बनने का निर्णय लिया है. उनका नाम 'कमला' रखा गया है और उन्होंने इस आयोजन में भाग लेने के लिए एक विशेष भूमिका निभाई है.

महाकुंभ के इस आयोजन को लेकर पूरे देशभर में उत्साह है और यह सिर्फ भारत नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत ध्यान आकर्षित कर रहा है. इस आयोजन में बड़ी संख्या में साधु-संत, भक्त और विभिन्न देशों के लोग भाग ले रहे हैं, जिससे यह आयोजन एक वैश्विक आध्यात्मिक मेला बन गया है.