Onam 2025: दक्षिण भारत का सबसे बड़ा और रंगीन त्योहार ओणम शुरू हो चुका है. खासकर केरल में इसे पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. मलयालम कैलेंडर के पहले महीने चिंगम में पड़ने वाला यह त्योहार अगस्त-सितंबर के बीच आता है और पूरे 10 दिनों तक चलता है. मलयालम में इसे थिरुवोणम भी कहते हैं.
ओणम की खासियत यह है कि इसे राजा महाबली के स्वागत में मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार में दैत्यराज महाबली को आशीर्वाद दिया था कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आ सकते हैं. यही कारण है कि ओणम को खुशहाली, एकता और भरपूर फसल का त्योहार माना जाता है.
इस साल थिरुवोणम नक्षत्र 4 सितंबर रात 11:44 बजे शुरू होकर 5 सितंबर रात 11:38 बजे तक रहेगा. इसी अवधि में ओणम का पर्व सबसे शुभ माना जाता है.
इस दिन लोग अपने घरों को फूलों और रंगोली (पुक्कलम) से सजाते हैं. परिवार और रिश्तेदार मिलकर केले के पत्ते पर परोसी जाने वाली ओणम साद्य दावत का आनंद लेते हैं, जिसमें खीर, पूरी, सब्जियां और तरह-तरह के पकवान होते हैं. केरल में इस दौरान कथकली नृत्य, नाव दौड़ (वल्लमकली) और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ और उपहार देकर त्योहार की खुशियां बांटते हैं.
ओणम के 10 दिनों का महत्व विस्तार से
ओणम का पहला दिन अथम कहलाता है. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं. पारंपरिक रूप से नाश्ते में केले और पापड़ जैसे व्यंजन खाए जाते हैं. इसी दिन से घरों में फूलों की सजावट यानी पुक्कलम बननी शुरू होती है, जो ओणम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है.
दूसरे दिन घर की साफ-सफाई और पुक्कलम को और सुंदर बनाने पर ध्यान दिया जाता है. महिलाएं फूलों की कालीन में नए फूल जोड़ती हैं और ये फूल पुरुष बाजार से लेकर आते हैं. इस तरह परिवार के हर सदस्य की भागीदारी होती है.
तीसरे दिन को खरीदारी और उपहारों का दिन कहा जाता है. लोग नए कपड़े, गहने और ज़रूरी चीजें खरीदते हैं. इसके साथ ही एक-दूसरे को उपहार देने की परंपरा भी निभाई जाती है. इस दिन से त्योहार का उत्साह और भी बढ़ जाता है.
यह दिन प्रतियोगिताओं का होता है. जगह-जगह फूलों के कालीन बनाने की प्रतियोगिताएं होती हैं. इसके अलावा लोग आने वाले थिरुवोणम यानी दसवें दिन की तैयारियां शुरू कर देते हैं.
पांचवां दिन ओणम की सबसे प्रसिद्ध परंपरा नौका दौड़ (Vallamkali) के लिए जाना जाता है. बड़ी-बड़ी नावों को सजाकर नदी में दौड़ आयोजित की जाती है. यह नजारा बेहद रोमांचक होता है और दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं.
छठे दिन सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है. लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक कार्यक्रम इस दिन की खासियत हैं. लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं और ओणम की शुभकामनाएं देते हैं.
सातवें दिन से त्योहार का जोश और बढ़ जाता है. बाजार तरह-तरह की वस्तुओं और पारंपरिक व्यंजनों से सज जाते हैं. लोग घरों में खास पकवान बनाते हैं और परिवार के साथ मिलकर उनका आनंद लेते हैं. मंदिरों में कथकली नृत्य और अन्य सांस्कृतिक आयोजन भी इस दिन देखे जाते हैं.
पूरादम के दिन लोग मिट्टी से पिरामिड आकार की छोटी मूर्तियाँ बनाते हैं. इन्हें "मां" कहकर सम्मान दिया जाता है और फूल अर्पित किए जाते हैं. यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से खास महत्व रखता है.
नौवें दिन को प्रथम ओणम कहा जाता है. इस दिन राजा महाबली के आगमन की तैयारियां होती हैं. लोगों का विश्वास है कि इस दिन से ही राजा धरती पर अपनी प्रजा से मिलने के लिए निकलते हैं. परिवार और समाज में खुशी का माहौल और भी गहरा हो जाता है.
ओणम का अंतिम और सबसे बड़ा दिन थिरुवोणम कहलाता है. मान्यता है कि इसी दिन राजा महाबली धरती पर आते हैं. लोग भव्य फूलों की कालीन (पुक्कलम) बनाते हैं और घर-घर में ओणम साद्य यानी दावत तैयार होती है. केले के पत्ते पर परोसी जाने वाली इस थाली में 20 से 25 तरह के व्यंजन शामिल होते हैं.