Jagannath Rath Yatra 2025: देवी गुंडिचा को क्यों कहा जाता है भगवान जगन्नाथ की मौसी? क्यों ठहरते हैं उनके घर

Rath Yatra 2025: हर साल की तरह इस बार भी भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ भव्य रथों में सवार होकर अपने मंदिर से मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ की ओर निकल पड़े हैं.

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Princy Sharma

Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी (ओडिशा) स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा इस बार रविवार, 27 जुन 2025 से शुरू हो चुकी है. हर साल की तरह इस बार भी भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ भव्य रथों में सवार होकर अपने मंदिर से मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ की ओर निकल पड़े हैं. करीब 3 किलोमीटर लंबी इस यात्रा में लाखों भक्त शामिल होते हैं. रथयात्रा का यह भव्य उत्सव पूरे 10 दिनों तक चलता है. 

यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि भगवान जगन्नाथ आखिर अपनी मौसी के घर क्यों जाते हैं? दरअसल, गुंडिचा मंदिर देवी गुंडिचा को समर्पित है, जो भगवान जगन्नाथ की मौसी मानी जाती हैं. कथा के अनुसार, राजा इंद्रधनुष की रानी गुंडिचा के कहने पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने तीनों मूर्तियों (जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा) का निर्माण यहीं पर किया था. तभी से यह मान्यता है कि यह स्थान भगवान की मौसी का घर है.

इतना ही नहीं, कहा जाता है कि रानी गुंडिचा के आग्रह पर ही रथयात्रा की परंपरा शुरू हुई थी. रानी ने भगवान जगन्नाथ को अपने घर आने का निमंत्रण दिया था, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और हर साल यहां 9 दिन ठहरने लगे.

मौसी के घर होता है शाही स्वागत

गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर भगवान जगन्नाथ का स्वागत राजसी अंदाज में किया जाता है. यहां उन्हें पादोपीठा, रसगुल्ले और कई स्वादिष्ट डिश भोग में चढ़ाए जाते हैं. मान्यता है कि मौसी के यहां का खाना इतना लजीज होता है कि भगवान का पेट तक खराब हो जाता है और फिर उन्हें पथ्य आहार और आयुर्वेदिक दवाएं दी जाती हैं. गुंडिचा मंदिर जहां स्थित है, उस स्थान को ‘सुंदराचल’ कहा जाता है और इसकी तुलना वृंदावन से की जाती है यानी यह एक दिव्य और पवित्र स्थान है, जहां भगवान अपने भक्तों को विशेष रूप से दर्शन देते हैं.

कैसे होती है वापसी

9 दिन मौसी के घर रुकने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों वापस जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं. इस वापसी यात्रा को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है, जो आषाढ़ मास की दशमी तिथि को होती है. मंदिर लौटने के बाद भी भगवान उसी रथ में एक और दिन तक रहते हैं. फिर एकादशी तिथि को मंदिर के पट खुलते हैं और तभी भगवान अंदर प्रवेश करते हैं.

यह रथयात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और प्रेम का महोत्सव है. अगर आप कभी पुरी नहीं गए हैं, तो भगवान जगन्नाथ की ये यात्रा एक बार जीवन में जरूर अनुभव करें क्योंकि ये महज दर्शन नहीं, ईश्वर के साथ एक भावनात्मक मिलन होता है.