सदियों तक वैज्ञानिक मानते रहे कि प्रकृति में असली नीले फल नहीं पाए जाते. ब्लूबेरी जैसे फल भी वास्तव में बैंगनी या इंडिगो शेड में होते हैं लेकिन इसी बीच ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के वर्षावनों में पाया जाने वाला एक वृक्ष इस समझ को चुनौती देता है- ब्लू क्वानडॉन्ग. इस पेड़ के चमकीले नीले फल इतने अविश्वसनीय दिखते हैं कि कई लोग उन्हें फोटोग्राफिक एडिटिंग का नतीजा मान बैठते हैं लेकिन यह प्राकृतिक रंग है और यह वृक्ष वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है.
Elaeocarpus angustifolius के फल देखने में छोटे, गोल और धातुई चमक वाले होते हैं, जिनका आकार 1 से 2 सेंटीमीटर तक होता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पौधों की दुनिया में इतने तीव्र नीले रंग का प्राकृतिक उदाहरण और कहीं नहीं मिलता. सूरज की रोशनी में इनका कोबाल्ट जैसा रंग इसे किसी रत्न की तरह चमका देता है, जिससे यह पेड़ वैज्ञानिकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस फल में कोई नीला पिगमेंट मौजूद ही नहीं है. आमतौर पर पौधों में नीला रंग एंथोसाइनिन पिगमेंट की वजह से बनता है, लेकिन जब वैज्ञानिकों ने इस फल को पीसकर पिगमेंट निकालने की कोशिश की, तो यह नीला नहीं बल्कि फीका ग्रे निकला. इससे साफ हुआ कि इसका रंग पूरी तरह किसी और कारण से बनता है.
इस फल का नीला रंग “स्ट्रक्चरल कलरशन” यानी संरचनात्मक रंग का उदाहरण है. इसके सूक्ष्म स्तर पर मौजूद परतदार ढांचे रोशनी को इस तरह परावर्तित करते हैं कि केवल नीली तरंगें आंखों तक पहुंचती हैं. यही तकनीक मोर के पंखों, तितलियों और कुछ मछलियों में भी पाई जाती है, पर पौधों में यह बेहद दुर्लभ है. इसलिए यह फल वैज्ञानिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है.
ब्लू क्वानडॉन्ग मुख्य रूप से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यू गिनी और इंडोनेशिया के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पाया जाता है. यह बड़ा, फैला हुआ वृक्ष है, जिसकी गहरी छाया और चमकीले फल जंगल में ध्यान तुरंत खींच लेते हैं. अक्सर इन फलों की चमक कम रोशनी में भी साफ दिखाई देती है, जिससे यह कई वन्यजीवों के लिए भी आकर्षण बनते हैं.
पौधों में संरचनात्मक रंग की खोज भविष्य में टिकाऊ और प्रकृति-प्रेरित कलर टेक्नोलॉजी के विकास में मदद कर सकती है. इसमें किसी रसायन या पिगमेंट की जरूरत नहीं होती, जिससे इसे पर्यावरण-सुरक्षित माना जाता है. ब्लू क्वानडॉन्ग विज्ञान को यह याद दिलाता है कि प्रकृति के पास आज भी ऐसे रहस्य छिपे हैं, जो हमारी समझ को चुनौती देते हैं और नई संभावनाओं के द्वार खोलते हैं.