'बच्चा ICU में है कल ऑफिस नहीं आ पाऊंगा', कर्मचारी के छुट्टी मांगने पर मैनेजर ने दिया ऐसा जवाब, जानकर हिल जाएंगे आप

एक युवा कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा करते हुए आरोप लगाया कि पारिवारिक संकट के बावजूद उनके मैनेजर ने उन्हें ऑफिस आने के लिए कहा. दादी के निधन और समय से पहले पैदा हुई भांजी के अस्पताल में भर्ती होने जैसी परिस्थितियों में भी कंपनी की संवेदनहीनता ने उन्हें मानसिक रूप से झकझोर दिया. यह मामला कॉरपोरेट संस्कृति में सहानुभूति की कमी और कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को उजागर करता है.

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Kuldeep Sharma

कॉरपोरेट दुनिया में काम करने वाले युवा कर्मचारियों के लिए यह खबर चौंकाने वाली है. एक कर्मचारी ने बताया कि उन्होंने जनवरी में बतौर फ्रेशर कंपनी जॉइन की थी और तब से लगातार मेहनत करते हुए समय पर ऑफिस पहुंचे, बिना अनप्लांड छुट्टी लिए अपनी जिम्मेदारी निभाई. लेकिन जब जीवन के मुश्किल हालात सामने आए, तो कंपनी और खासकर उनके मैनेजर से उन्हें सहानुभूति की उम्मीद थी. अफसोस कि उन्हें समझने के बजाय काम पर लौटने का दबाव झेलना पड़ा.

कर्मचारी ने बताया कि अगस्त के आखिरी दिनों में उनके परिवार पर लगातार दो बड़े झटके आए. पहले उनकी दादी का निधन हो गया और उसके कुछ ही समय बाद उनकी भांजी का जन्म समय से पहले हो गया, जिसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. इस कठिन परिस्थिति में वे स्वाभाविक रूप से टूट गए थे और उन्हें उम्मीद थी कि मैनेजर उनकी स्थिति को समझेंगे. लेकिन इसके उलट उन्हें कहा गया कि ऑफिस आना जरूरी है, मानो कुछ हुआ ही न हो.

व्हाट्सएप चैट से हुआ खुलासा

अपने दावे को मजबूत करने के लिए कर्मचारी ने मैनेजर के साथ हुई व्हाट्सएप बातचीत का स्क्रीनशॉट भी साझा किया. उसमें कर्मचारी ने मैनेजर को लिखा, 'हमारा बच्चा एनआईसीयू में है और अगले 24 घंटे ऑब्जर्वेशन में रहेगा. मैं कल भी काम पर नहीं आ पाऊंगा, क्योंकि अभी अस्पताल में हूं.' इस पर मैनेजर ने पहले तो लिखा 'ठीक है बेटा, अपडेट देने के लिए धन्यवाद.' लेकिन तुरंत बाद ही मैसेज भेजा 'अगर कल आने की संभावना हो, तो कृपया कोशिश करना.' इस जवाब ने कर्मचारी और कई अन्य युवाओं को भीतर तक झकझोर दिया.

In today’s episode of how a manager can f*ck up your mental health when you are already in stress!
byu/Practical_Regret_ inIndianWorkplace

कॉरपोरेट कल्चर पर सवाल

इस घटना ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है. कई लोगों का कहना है कि कार्यस्थल पर संवेदनशीलता की कमी कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालती है. खासतौर पर तब, जब व्यक्तिगत जीवन में संकट गहराता है. कई यूजर्स ने इसे कॉरपोरेट दुनिया की 'कल्चर क्रुएलिटी' का उदाहरण बताया और कहा कि सिर्फ लक्ष्य और डेडलाइन ही अहम नहीं होते, बल्कि कर्मचारियों की भावनाएं और उनकी निजी परिस्थितियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं.

मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल की जिम्मेदारी

यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी का नहीं, बल्कि उन हजारों युवाओं की आवाज है जो दफ्तरों में सहानुभूति की कमी का सामना करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियों को न सिर्फ उत्पादकता पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि कर्मचारियों की मानसिक सेहत का भी ख्याल रखना चाहिए. आखिरकार, स्वस्थ और संतुलित मनोस्थिति ही अच्छे काम और बेहतर नतीजों की नींव होती है. यह घटना एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती है कि क्या कॉरपोरेट माहौल इंसानियत से ज्यादा लक्ष्य और आंकड़ों पर केंद्रित हो गया है.