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कैसे ज्ञानमार्गी से भक्ति मार्गी बन गए स्वामी प्रेमानंद महाराज?

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Mohit Tiwari

वृंदावन के संत स्वामी प्रेमानंद महाराज 13 वर्ष की उम्र में ही दीक्षा लेकर संत बन गए थे. उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया था. उनके दादाजी भी संन्यासी थी.उत्तरप्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल के अखरी गांव में जन्म लेने वाले प्रेमानंद महाराज के बचपन का नाम अनिरूद्ध कुमार है और इनके पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम रामा देवी है. 

स्वामी प्रेमानंद महाराज से मिलने के लिए विराट कोहली, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे कई बड़े-बड़े लोग आते हैं. प्रेमानंद महाराज ने श्रीराधा राधावल्लभी संप्रादाय में दीक्षा ली है. वे पहले ज्ञानमार्गी संन्यासी थे, भगवान श्रीकृष्ण की लीला का देखकर उनका हृदय परिवर्तित हो गया और वे भक्ति मार्गी बन गए. प्रेमानंद महाराज की दोनों किडनियां खराब हैं, उन्होंने एक किडनी का नाम राधा तो दूसरी का नाम कृष्ण रखा है.

स्वामी प्रेमानंद महाराज के गुरु संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज हैं. प्रेमानंद महाराज रोज बिहारी जी के मंदिर में जाने लगे थे और यहीं से उनको भक्ति मार्ग मिला था. राधावल्लभ मंदिर में उनकी मुलाकात तिलकायत अधिकारी मोहित मराल गोस्वामी से हुई थी. गोस्वामी ने उन्हें गौरांगी शरण महाराज के पास भेजा था. यहीं पर प्रेमानंद महाराज ने श्रीराधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली. प्रेमानंद महाराज रोज छटीकरा रोड पर मौजूद श्रीकृष्णम शरणम् सोसाइटी से रमणरेती क्षेत्र स्थित अपने आश्रम श्रीहित केलि कुंज जाते हैं. इस 2 किमी की पदयाक्षा के दौरान महाराज जी की एक झलक पाने के लिए लोग बेताब रहते हैं. 

Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.  theindiadaily.com  इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.