22 साल में बनीं देश की सबसे युवा ग्राम प्रधान, बीटेक करने के बाद क्यों चुना ये रास्ता

कुई गांव के लोगों ने हाल ही में एक नई प्रधान चुनी थी, जिनकी उम्र महज 22 साल है. उत्तराखंड की बीटेक पास साक्षी रावत अब देश की सबसे युवा ग्राम प्रधानों में से एक बन गई हैं.

Anuj

पौड़ी गढ़वाल: कुई गांव के लोगों ने हाल ही में एक नई प्रधान चुनी थी, जिनकी उम्र महज 22 साल है. उत्तराखंड की बीटेक पास साक्षी रावत अब देश की सबसे युवा ग्राम प्रधानों में से एक बन गई हैं. साक्षी का सार्वजनिक जीवन में आने का फैसला बहुत सरल सोच से निकला. वह अपने गांव के लिए काम करना चाहती थी. उनकी एक सोच यह भी थी कि गांव में ही नए अवसर बने. भारतीय संविधान के अनुसार, देश में 21 वर्ष या उससे अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति ग्राम पंचायत चुनाव लड़ सकता है.

सामाजिक कार्यों में झुकाव

साक्षी का बचपन से ही सामाजिक कार्यों में झुकाव रहा है. वह हमेशा अपने आसपास के लोगों की मदद करना चाहती थी. उनके परिवार ने भी उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया. उनके पिता ने पूरी प्रक्रिया में हर कदम पर उनका साथ दिया. पढ़ाई पूरी करने के बाद साक्षी चाहती थी कि वे शहर जाकर नौकरी करने के बजाय अपने गांव लौटकर बदलाव की शुरुआत करें. यह फैसला उनके करियर की दिशा बदल देने वाला साबित हुआ.

 नए तरीकों पर विचार

ग्राम प्रधान का पद संभालते हुए उन्हें अब तीन महीने हो चुके हैं. जैव प्रौद्योगिकी की पढ़ाई होने के कारण साक्षी गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नए तरीकों पर विचार कर रही हैं. उनकी सबसे बड़ी चिंता- गांव से युवाओं का लगातार शहरों की ओर जाना है. इसे रोकने के लिए वह स्थानीय किसानों के साथ मिलकर विदेशी फलों और फूलों की खेती को बढ़ावा देना चाहती हैं, ताकि गांव में ही रोजगार के अवसर बनें और लोग बाहर न जाएं.

तरक्की में महिलाओं की भागीदारी आवश्यक

साक्षी की योजनाओं में बच्चों की बेहतर शिक्षा, युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट और गांव में डिजिटल सुविधाओं को बढ़ाना शामिल है. इसके साथ ही वे गांव में अच्छी सड़कें और मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार करवाना चाहती हैं. उनका मानना है कि गांव की तरक्की में महिलाओं की भागीदारी बहुत जरूरी है, इसलिए वे महिलाओं को भी निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहती हैं.

विकास हमेशा बाहरी लोगों से नहीं आता

साक्षी का स्थानीय लोगों से जुड़ाव तभी शुरू हुआ था, जब वे पौड़ी के कॉलेज में पढ़ रही थी. वहां उन्हें कई प्रोजेक्ट्स में लोगों से मिलना और उनकी समस्याएं समझनी पड़ती थी. उसी अनुभव ने उन्हें एहसास कराया कि गांव में भी इसी तरह के काम किए जा सकते हैं.

साक्षी की यह यात्रा अचानक लिया गया फैसला नहीं बल्कि एक सोच-समझकर उठाया गया कदम है. वह दिखाती हैं कि विकास हमेशा बाहरी लोगों से नहीं आता, बल्कि कई बार बदलाव शुरू होता है किसी ऐसे व्यक्ति से जो अपने गांव के लिए दिल से काम करना चाहता हो. कुई गांव के लोग अब साक्षी में एक नई उम्मीद देख रहे हैं. एक युवा नेता, जो छोटे गांव को भी बड़े सपने दिखाने की क्षमता रखती है.