Uttarakhand Masan Worship: 'कितना भी रहो परदेस में देवता पूजने तो आना पड़ेगा पहाड़ में...,' इस एक लाइन में छिपी है पहाड़ की 'खौफनाक मान्यता'

Uttarakhand Masan Worship: भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय भी मसाण को स्थानीय देवता की श्रेणी में गिनता है. मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर मसाण और खबीस का वर्णन मिलता है, जिसमें इन्हें श्मशान और जंगलों में रहने वाली शक्तियों के रूप में बताया गया है.

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Reepu Kumari

Uttarakhand Masan Worship: 'कितना भी रहो परदेस में देवता पूजने तो आना पड़ेगा पहाड़ में, यह लाइन उन लोगों के लिए है जो पहाड़ों में रहते हैं. इस एक लाइन में एक ऐसा डर है जिसका बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. उत्तराखंड के पहाड़ों में मान्यताओं और लोककथाओं का गहरा असर है. भले ही पहाड़ी लोग काम-काज या पढ़ाई के लिए मैदानों और शहरों में बस जाते हों, लेकिन एक बात उनके जीवन से कभी नहीं मिटती-'देवता और मसाण की पूजा'.

अक्सर स्थानीय लोग मजाक में कहते हैं 'कितना भी रहो परदेस में, मसाण पूजने तो आना ही पड़ेगा पहाड़.' लेकिन यह सिर्फ मजाक भर नहीं है, बल्कि उस डर और आस्था का प्रतीक है जो पीढ़ियों से लोगों के दिलों में बसा है.

क्या है मसाण?

मसाण, जिन्हें श्मशान के देवता या भूत भी कहा जाता है, पहाड़ों में आज भी लोगों की सोच और जीवन का अहम हिस्सा हैं. लोककथाओं के अनुसार ये प्रेत-जैसी शक्तियां नदियों के संगम, जंगलों और श्मशान स्थलों पर वास करती हैं. लोगों का मानना है कि अगर इनका हिस्सा न चुकाया जाए तो ये भारी अनिष्ट कर सकते हैं. यही कारण है कि चाहे कोई कहीं भी हो, गर्मियों की छुट्टियां आते ही लोग गांव लौटकर जागर, पूजा और देवताओं की आराधना करना नहीं भूलते.

मसाण का डर और पहाड़ों की हकीकत

उत्तराखंड के गांवों में मसाण का नाम सुनते ही लोग सहम जाते हैं. माना जाता है कि ये आत्माएं श्मशान और नदियों के किनारे रहती हैं और किसी भी व्यक्ति पर अचानक सवार हो सकती हैं. कई परिवारों का दावा है कि उनके पूर्वज भी इस त्रासदी का सामना कर चुके हैं.

गंगनाथ ज्यू और मसाण की कथा

स्थानीय मान्यता है कि लोकप्रिय देवता गंगनाथ ज्यू को भी 13 साल की उम्र में काली घाट के मसाण ने पकड़ा था. दोनों के बीच सात दिन और सात रात तक भयंकर युद्ध चला. अंत में गोल ज्यू की मदद से गंगनाथ ज्यू ने मसाण को साधा. तभी से गंगनाथ ज्यू की पूजा के साथ गोल ज्यू का नाम लेना अनिवार्य माना जाता है.

आस्था और अनिवार्य पूजा

कहा जाता है कि चाहे पहाड़ी लोग मैदानों में बस गए हों, लेकिन मसाण की पूजा करना कभी नहीं छोड़ते. लोग मानते हैं कि पूजा और जागर से ही वे इन शक्तियों को शांत कर सकते हैं. यही वजह है कि गर्मियों की छुट्टियों में लोग अपने गांव लौटकर इस परंपरा को निभाते हैं.

मसाण को मान्यता

भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय भी मसाण को स्थानीय देवता की श्रेणी में गिनता है. मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर मसाण और खबीस का वर्णन मिलता है, जिसमें इन्हें श्मशान और जंगलों में रहने वाली शक्तियों के रूप में बताया गया है.

मसाण की पहचान

मान्यताओं के अनुसार मसाण काला और कुरूप होता है. वह चिता की राख से उत्पन्न होता है और लोगों को बीमार, पागल या यहां तक कि मृत भी कर सकता है. कई बार यह भैंस या भेड़-बकरी की आवाज़ में बोलता है और साधु के वेश में यात्रियों के साथ चलने लगता है.

जागर और उग्र उपाय

जब किसी पर मसाण चढ़ता है तो गांव वाले जागर कराते हैं. इस दौरान धान-चावल फेंके जाते हैं, बिच्छू घास से मारते हैं और गरम राख फेंककर भूत को भगाने की कोशिश की जाती है. कई बार यह प्रक्रिया इतनी उग्र हो जाती है कि पीड़ित की जान तक चली जाती है.

आस्था या अंधविश्वास?

कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ इसे अपनी धार्मिक परंपरा. लेकिन पहाड़ों में मसाण का डर और उनकी पूजा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सदियों पहले थी.

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