उत्तर प्रदेश की वोटर लिस्ट में बड़ा बदलाव, SIR से 2.89 करोड़ नाम कटने के संकेत, चुनाव आयोग ने बताए कारण

उत्तर प्रदेश में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के तहत मतदाता सूची में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है. चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, राज्य के करीब 18.70 प्रतिशत मतदाताओं यानी लगभग 2.89 करोड़ लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं.

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Meenu Singh

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के तहत मतदाता सूची में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है. चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, राज्य के करीब 18.70 प्रतिशत मतदाताओं यानी लगभग 2.89 करोड़ लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं.

इसका उद्देश्य आने वाले चुनावों के लिए एक साफ और सही मतदाता सूची तैयार करना है. SIR से चुनाव में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि आगामी चुनाव में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी न हो. 

ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की नई तारीख

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से जुड़ी समय-सारिणी में बदलाव किया है. पहले ड्राफ्ट रोल 31 दिसंबर को जारी होना था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 6 जनवरी 2026 कर दिया गया है. इसके बाद 6 जनवरी से 6 फरवरी 2026 तक लोग अपने नाम से जुड़ी दावे और आपत्तियां दर्ज करा सकेंगे. अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 6 मार्च 2026 को किया जाएगा.

कार्यक्रम में बदलाव क्यों हुआ?

राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 15,030 नए मतदान केंद्र बनाए गए हैं. बूथों के नए सिरे से निर्धारण (युक्तिकरण) के कारण कई मतदाताओं के नाम एक बूथ से दूसरे बूथ पर शिफ्ट किए गए हैं. इन तकनीकी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय की जरूरत पड़ी, इसलिए कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव किया गया.

क्यों हटाए जा रहे इतने ज्यादा नाम?

उत्तर प्रदेश में कुल करीब 15.44 करोड़ मतदाता दर्ज हैं. इनमें से जिन 2.89 करोड़ नामों को हटाने के लिए चिन्हित किया गया है, उनके पीछे कई अलग-अलग कारण हैं.

बता दें उत्तर प्रदेश की मतदाता सूची से  नाम हटने वाले लगभग 46.24 लाख मतदाताओं का निधन हो चुका है वहीं करीब 1.3 करोड़ लोग स्थायी रूप से किसी दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गए हैं. 79.52 लाख मतदाता सर्वे के दौरान अपने पते पर नहीं मिले तो 25.47 लाख लोगों के नाम एक से ज्यादा जगह दर्ज पाए गए हैं. 

शहरी इलाकों में ज्यादा असर

ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी जिलों में नाम कटने की संख्या ज्यादा है. लखनऊ में सबसे ज्यादा करीब 12 लाख नाम हटाए जाने की संभावना है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 30 प्रतिशत है. गाजियाबाद में 8.18 लाख, कानपुर शहरी क्षेत्र में करीब 9 लाख और प्रयागराज में 11.56 लाख नाम कट सकते हैं.

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इतनी बड़ी संख्या में नाम हटने के बावजूद विपक्षी दलों ने अभी तक किसी बड़ी गड़बड़ी का आरोप नहीं लगाया है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि शहरों में पढ़ाई और नौकरी के कारण लोग एक से ज्यादा जगह रहते हैं, जिससे उनके नाम दो स्थानों पर दर्ज हो जाते हैं. पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं से ऐसे ‘लापता’ मतदाताओं को खोजने को कहा है.

वहीं, भाजपा का फोकस उन नए मतदाताओं पर है जो 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले 18 साल के हो जाएंगे. पार्टी का अनुमान है कि लगभग 50 लाख नए मतदाता सूची में जुड़ सकते हैं.