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कौसल से साकेत तक… अयोध्या के कितने नाम? पीएम मोदी के धर्म ध्वजारोहण से पहले जानिए इतिहास

अयोध्या, जहां आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राममंदिर में धर्मध्वजा लोकार्पण करेंगे, प्राचीन काल में कई नामों से जानी जाती रही है.

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Reepu Kumari

अयोध्या: राम जन्मभूमि अयोध्या में आज ऐतिहासिक क्षण देखने को मिलेगा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राममंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा धारण करेंगे. यह उस सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक होगा, जो सदियों से हिंदू परंपरा, मर्यादा और आदर्श राज्य की धुरी रही है. मंदिर के पूर्ण स्वरूप की घोषणा के साथ ही, यह समारोह अयोध्या की प्राचीन प्रतिष्ठा को फिर से विश्व पटल पर स्थापित करेगा. अयोध्या का इतिहास केवल आस्था नहीं, बल्कि अनेक नामों की विरासत भी समेटे है.

कभी कोसल की राजधानी, कभी साकेत नाम से प्रसिद्ध, तो कभी लोकभाषा में अयुद्धा या अयोद्धा के रूप में पहचानी गई. यह विविध पहचान दर्शाती है कि समय बदला, शासन बदले, पर अयोध्या की महत्ता नहीं बदली. धर्मध्वजा समारोह ने इस चर्चा को फिर जीवित किया है कि आखिर इस पावन नगरी को कितने नामों से पुकारा गया और क्यों?

साकेत नाम 

अयोध्या केवल एक नगर नहीं, बल्कि आदर्श राज्य और धर्मराज्य की कल्पना का प्रतीक है. साकेत नाम इसी नगरी के लिए मोक्ष, परमधाम और वैकुंठ जैसे आध्यात्मिक अर्थों में प्रयुक्त हुआ. बौद्ध और जैन परंपरा ने इसे ऐसे पवित्र नगर के रूप में देखा, जहां सांसारिक बंधन समाप्त होते हैं. वहीं, कोसल इसका व्यापक भू-राजनीतिक क्षेत्र था, जिसका केंद्र यही अयोध्या रही. नाम अलग दिखते हैं, पर सभी का आशय एक ही दिव्यता का बोध कराना है.

धर्मध्वजा लोकार्पण से नामों की नई चर्चा

धर्मध्वजा लोकार्पण के साथ विश्वस्तर पर अयोध्या का महत्व बढ़ा है. मंदिर निर्माण, पर्यटन, मीडिया कवरेज और करोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने इस नगर को फिर वैश्विक केंद्र बनाया. इसके साथ ही लोगों की जिज्ञासा बढ़ी कि क्या साकेत और अयोध्या अलग हैं, क्या केवल कोसल राज्य का नाम था, और अयुद्धा जैसे स्थानीय नाम किससे बने? इस खोज ने अयोध्या को मिथक नहीं, ऐतिहासिक, भाषिक और सांस्कृतिक अध्ययन का विषय बना दिया है.

नाम अनेक, मूल एक

संक्षेप में, कोसल राज्य, उसकी राजधानी अयोध्या और साकेत का सांस्कृतिक नाम, एक ही पहचान के भिन्न आयाम हैं. लोकभाषा में प्रयुक्त अयोध्या, अयुद्धा या अयोद्धा मात्र उच्चारण के रूप हैं. धर्मध्वजा जैसे आयोजन इन नामों की परतें खोलते हैं और यह संदेश देते हैं कि नाम बदल सकते हैं, पर अयोध्या की आत्मा सदियों से एक ही है. यह वह भूमि है, जहां मर्यादा पुरुषोत्तम का आदर्श आज भी भारतीय मन को दिशा देता है.