Rajasthan Bhai Dooj Tradition: डूंगरपुर के इस गांव में भाई दूज पर अनूठी परंपरा, साल भर का हाल जानने के लिए दौड़ती हैं 200 गायें
Rajasthan Bhai Dooj Tradition: राजस्थान के डूंगरपुर के छापी गांव में भाई दूज पर 200 गायों की पारंपरिक दौड़ आयोजित होती है, जिसके जरिए ग्रामीण आने वाले साल की बारिश और फसल की भविष्यवाणी करते हैं. यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है और आज भी उतनी ही श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है.
Rajasthan Bhai Dooj Tradition: राजस्थान के डूंगरपुर जिले के छापी गांव में भाई दूज के दिन एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है जो पूरे देश में अनोखी है. दिवाली के बाद जब हर जगह भाई-बहन के प्रेम का त्योहार मनाया जाता है, तब छापी गांव में गायों की दौड़ आयोजित की जाती है. यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है और आज भी उतनी ही श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है. इस दौड़ के माध्यम से ग्रामीण आने वाले वर्ष की बारिश, फसल और समृद्धि का पूर्वानुमान लगाते हैं.
इस आयोजन की सबसे खास बात यह है कि इसमें 42 गांवों से पशुपालक अपनी गायों को लेकर आते हैं. कुल मिलाकर लगभग 200 गायें इस दौड़ में हिस्सा लेती हैं. गायों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. उनके शरीर पर मोरपंख, रंग-बिरंगे कपड़े, तोरण और चमकीले रंग लगाए जाते हैं. इसके बाद सभी गायों को छापी पंचायत भवन के पास बने मैदान में इकट्ठा किया जाता है. ढोल-ताशों और जयकारों के बीच यह दौड़ शुरू होती है. शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद ग्रामीण गायों को मैदान में दौड़ाते हैं.
राजस्थान की अनूठी परंपरा
जैसे ही दौड़ शुरू होती है, पूरा मैदान धूल के गुबार से भर जाता है. दर्शकों का उत्साह चरम पर होता है. बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इस अनूठी परंपरा का आनंद लेते हैं. इस दौड़ में सफेद, लाल, पीली और काली गायें भाग लेती हैं. हर रंग की गाय का एक विशेष अर्थ माना जाता है. सफेद रंग की गाय के जीतने का अर्थ होता है कि आने वाला साल शुभ रहेगा, अच्छी बरसात होगी और फसलें लहलहाएंगी. लाल रंग की गाय अतिवृष्टि का संकेत देती है, जबकि काले रंग की गाय की जीत सूखे या कम बरसात का प्रतीक मानी जाती है.
एक महामारी दौरान हुई इस परंपरा की शुरुआत
ग्रामीण बताते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत सदियों पहले एक महामारी के दौरान हुई थी. उस समय लोगों ने माना कि गायों के पैरों से उड़ने वाली मिट्टी से गांव का वातावरण पवित्र होगा और बीमारियाँ दूर होंगी. तभी से यह आयोजन हर साल भाई दूज पर किया जाता है. आज भी यह परंपरा गांव में एकता, विश्वास और धार्मिक आस्था का प्रतीक बनी हुई है. यह केवल एक दौड़ नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति और परंपरा का जीवंत उत्सव है जो हर साल नई उम्मीदें लेकर आता है.
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