बेंगलुरु: कर्नाटक ने आरएसएस के साथ विवाद के बीच एक आदेश जारी किया था. इसके तहत सार्वजनिक स्थानों पर 10 से अधिक लोगों के एकत्र होने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया था. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार को झटका देते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर 10 से अधिक लोगों के एकत्र होने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था.
कांग्रेस सरकार ने 18 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर किसी भी निजी संगठन, संघ या व्यक्तियों के समूह को अपनी गतिविधियों के लिए सरकारी संपत्ति या परिसर का उपयोग करने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि इस कदम का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों को प्रतिबंधित करना है.
हालांकि सरकारी आदेश में भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया है, लेकिन कहा जा रहा है कि आदेश के प्रावधानों का उद्देश्य हिंदू दक्षिणपंथी संगठन की गतिविधियों को प्रभावित करना है, जिसमें उसके मार्ग मार्च भी शामिल हैं. इसके बाद इस आदेश को अदालत में चुनौती दी गई.
राज्य सरकार ने अपने आदेश का बचाव करते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार के तहत शिक्षा विभाग द्वारा जारी 2013 के परिपत्र का हवाला दिया है, जिसमें स्कूल परिसर और संलग्न खेल के मैदानों का उपयोग केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए प्रतिबंधित किया गया है. यह आदेश कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर आरएसएस की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के कुछ दिनों बाद आया है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र खड़गे ने 4 अक्टूबर को सिद्धारमैया को लिखे पत्र में आरोप लगाया कि आरएसएस सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों पर भी अपनी शाखाएं चला रहा है, जहां 'नारे लगाए जाते हैं और बच्चों और युवाओं के मन में नकारात्मक विचार भरे जाते हैं.'
प्रियांक खड़गे के गृह निर्वाचन क्षेत्र चित्तपुर में अधिकारियों ने शांति और कानून व्यवस्था में व्यवधान की संभावना का हवाला देते हुए 19 अक्टूबर को आरएसएस के मार्च की अनुमति देने से इनकार कर दिया.