सुकून के लिए छोड़ी कॉर्पोरेट नौकरी, अब उबर चलाकर ज्यादा कमा रहा बेंगलुरु का ये शख्स

बेंगलुरु के दीपेश नाम के युवक ने रिलायंस रिटेल में आठ साल तक काम करने के बाद वर्क-लाइफ बैलेंस बिगड़ता देख नौकरी छोड़ दी और उबर ड्राइवर बन गए.

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Kuldeep Sharma

सफलता का मतलब हमेशा ऊंचे पद या बड़ी सैलरी नहीं होता, यह बात बेंगलुरु के दीपेश ने अपने फैसले से साबित कर दी है. एक समय था जब वह रिलायंस रिटेल में एक स्थिर नौकरी कर रहे थे, लेकिन परिवार से दूर होते जा रहे थे. 

काम का दबाव इतना था कि वे अपनी पत्नी और बच्चों को वक्त नहीं दे पा रहे थे. आखिरकार दीपेश ने ऐसा कदम उठाया, जिसने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली बल्कि हजारों लोगों को प्रेरित भी किया.

कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ बनाई नई राह

दीपेश ने आठ साल तक रिलायंस रिटेल में काम किया और करीब ₹40,000 महीना कमाते थे. नौकरी स्थिर थी, लेकिन जिंदगी नहीं. सुबह से रात तक चलने वाले काम ने उन्हें थका दिया था. परिवार के साथ समय बिताने की चाहत और मन की शांति की तलाश में उन्होंने एक दिन अचानक फैसला लिया कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर खुद की गाड़ी चलाने का. यह फैसला जोखिम भरा जरूर था, लेकिन उनके लिए 'सुकून की शुरुआत' साबित हुआ.

अब खुद के बॉस, कम मेहनत में ज्यादा कमाई

दीपेश ने उबर ड्राइवर के रूप में काम शुरू किया. शुरू में लोगों को हैरानी हुई, लेकिन जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि अब उनके पास न सिर्फ वक्त है, बल्कि आत्मसंतोष भी. वह महीने में सिर्फ 21 दिन काम करते हैं और करीब ₹56,000 कमा लेते हैं, जो पहले से ज्यादा है. Varun Agarwal नामक एक उद्यमी ने X पर दीपेश की कहानी साझा करते हुए लिखा 'अब वह अपनी लाइफ का स्टीयरिंग खुद चला रहे हैं, और यही असली सफलता है.'

सेविंग्स से खरीदी दूसरी कार

दीपेश ने सिर्फ कमाई नहीं बढ़ाई, बल्कि भविष्य के लिए भी योजना बनाई. उन्होंने अनुशासित बचत से एक और कार खरीदी और उसके लिए ड्राइवर रख लिया. यह उनके छोटे-से 'फ्लीट बिजनेस' की शुरुआत है. यानी, जो कभी किसी के लिए काम करता था, अब खुद लोगों को रोजगार देने लगा है. सोशल मीडिया पर लोग उनकी इस सोच को 'रियल प्रमोशन' बता रहे हैं, जहां पद नहीं, बल्कि संतुलित जीवन ही सफलता की पहचान बन गया.

लोगों को मिला 'वर्क-लाइफ बैलेंस' का नया नजरिया

दीपेश की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है. कई यूजर्स ने लिखा 'यह कोई डाउनग्रेड नहीं, बल्कि अपग्रेड है. उसने जो खोया, उसकी तुलना में बहुत कुछ पा लिया.' एक अन्य यूजर ने लिखा 'कभी-कभी आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद ड्राइवर सीट पर बैठना.' दीपेश ने यह साबित कर दिया कि जब इंसान अपनी प्राथमिकताओं को समझ लेता है, तो जीवन का रास्ता खुद-ब-खुद आसान हो जाता है.