menu-icon
India Daily

Subhash Chandra Bose Jayanti: आखिरी बार झारखंड के इस जंगल में देखे गए थे नेता जी, गुप्त बैठक के बाद कहां हो गए थे गायब?

हर साल भारत में 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है. 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष चंद्र बोस को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘नेता जी’ की उपाधि दी थी. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने झारखंड में कई बार दौरा किया और अपनी अंतिम गुप्त बैठक भी यहीं की थी.

auth-image
Edited By: Babli Rautela
Subhash Chandra Bose Jayanti
Courtesy: Social Media

Subhash Chandra Bose Jayanti: 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष चंद्र बोस को रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘नेता जी’ की उपाधि दी थी. उनकी जयंती पर हर साल भारत में पराक्रम दिवस मनाया जाता है. स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक की कई कहानियां देशभर में प्रसिद्ध हैं. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि नेता जी का झारखंड से भी खास रिश्ता था. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने झारखंड में कई बार दौरा किया और अपनी अंतिम गुप्त बैठक भी यहीं की थी.

गोमो जंक्शन पर आखिरी बार देखे गए नेता जी

नेता जी सुभाष चंद्र बोस को अंतिम बार झारखंड के धनबाद स्थित गोमो जंक्शन पर देखा गया था. इस घटना का जिक्र कई मीडिया रिपोर्ट्स और 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी किया गया. साल 2009 में, उनके सम्मान में इस रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया गया.

17 जनवरी 1941 को नेता जी अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ अंग्रेजों की नजरों से बचते हुए गोमो पहुंचे. वे हटियाटाड़ के जंगलों में छिपे रहे, जहां उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और अधिवक्ता चिरंजीव बाबू के साथ गुप्त बैठक की. इसके बाद, स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें गोमो के लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में ठहराया गया.

1930-1941: झारखंड के धनबाद में कई बार आए नेता जी

सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से गहरा नाता रहा. 1930 से 1941 के बीच, उन्होंने यहां कई बार दौरा किया. 1930 में उन्होंने टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की, जो देश का पहला पंजीकृत मजदूर संगठन था. इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने मजदूरों को संगठित करने और उनके अधिकारों की लड़ाई शुरू की. 18 जनवरी 1941 को, उनके सहयोगियों अलीजान और चिरंजीव बाबू ने उन्हें दिल्ली के लिए रवाना कर दिया.

गोमो के स्थानीय लोग आज भी नेता जी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में 18 जनवरी को विशेष आयोजन करते हैं. नेता जी एक्सप्रेस ट्रेन के लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर को माला पहनाकर सम्मानित किया जाता है. ट्रेन के इंजन पर नेता जी की तस्वीर लगाई जाती है और यह परंपरा सालों से जारी है.

नेता जी का झारखंड से गहरा नाता

झारखंड में सुभाष चंद्र बोस ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए गुप्त बैठकें कीं, बल्कि मजदूर आंदोलन की नींव भी रखी. हटियाटाड़ के जंगलों में उनकी गतिविधियां आज भी यहां के लोगों की यादों में बसी हैं. झारखंड का धनबाद जिला और गोमो जंक्शन नेता जी की गुप्त रणनीतियों का गवाह है.

सुभाष चंद्र बोस ने अपने अदम्य साहस और नेतृत्व से देश को स्वतंत्रता संग्राम की नई दिशा दी. उनकी झारखंड यात्रा, मजदूरों का संगठन, और गुप्त बैठकों ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई. उनकी कहानी झारखंड के हर कोने में गूंजती है और आज भी प्रेरणा का स्रोत है.