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गलती या गुस्ताखी! आखिर कहां चूक गई कांग्रेस? जानें हरियाणा हार का कारण

Haryana Election Result: हरियाणा में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. अब इसे लेकर चुनावी चर्चाएं हो रही हैं. लोग आंकलन कर रहे हैं कि आखिर इतनी उम्मीद वाले चुनाव में हार क्यों हो गई. आइये कांग्रेस के हार के संभावित कारण जानने की कोशिश करते हैं और जानते हैं कि पार्टी से आखिर कहां चूक हो गई?

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Shyam Datt Chaturvedi
Haryana Congress Defeat Reason
Courtesy: India Daily Live

Haryana Election Result: हरियाणा में कांग्रेस एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ सीधी चुनावी लड़ाई में असफल रही है. 10 साल के बीजेपी शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बड़ी जीत की उम्मीद कर रही थी, केवल 37 सीटें जीतने में सफल रही.

बीजेपी ने राज्य में रिकॉर्ड हैट्रिक लगाते हुए 48 सीटें जीतकर इतिहास रचा है. CM नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में बीजेपी ने राज्य में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है. आइये जानें आखिर कांग्रेस से कहां चूक हो गई?

कांग्रेस की हार के कारण

कांग्रेस की इस निराशाजनक हार के कई कारण हो सकते हैं. हालांकि, सबसे बड़ा कारण शायद राज्य इकाई में गुटबाजी था. कांग्रेस नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को चुनाव रणनीति और प्रचार की पूरी जिम्मेदारी सौंपी थी. इससे अन्य वरिष्ठ नेताओं की दावेदारी को नजरअंदाज किया गया. खासकर कुमारी शैलजा जो कांग्रेस की प्रमुख दलित चेहरा मानी जाती हैं. चुनाव में हुड्डा के प्रभुत्व से नाराज थीं और अधिकतर चुनाव प्रचार से दूर रहीं.

बीजेपी नेताओं ने नाराज शैलजा का हवाला देते हुए कांग्रेस पर दलितों का अपमान करने का आरोप लगाया. यहां तक कि शैलजा के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें भी उड़ीं, लेकिन उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात के बाद अपनी निष्ठा स्पष्ट की.

चुनाव प्रचार में शैलजा की सीमित भूमिका

हालांकि शैलजा ने पार्टी के साथ बने रहने की घोषणा की, लेकिन उनके चुनाव प्रचार में जोश की कमी दिखाई दी और वे अधिकतर सिर्फ फोटो-ऑप तक सीमित रहीं. कांग्रेस हाईकमान ने शैलजा और हुड्डा के बीच इस दूरी को पाटने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया. अंततः, कांग्रेस में नतीजे आने से पहले ही असंतोष उभर आया था. शैलजा ने introspection की मांग की यानी इस हार के बाद हरियाणा में सब कुछ सामान्य नहीं रहेगा.

कांग्रेसी गुटबाजी: पुरानी समस्या

यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस नेतृत्व ने राज्य के नेताओं को विधानसभा चुनावों में पूरी नियंत्रण दे दिया हो और पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा हो. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस नेतृत्व ने राज्य के नेताओं पर भरोसा किया. हालांकि, यहां भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.

बीजेपी से सीख लेने की जरूरत

हरियाणा के नतीजों से कांग्रेस को यह सबक लेना चाहिए कि मजबूत राज्य नेतृत्व महत्वपूर्ण है. बीजेपी ने सही समय पर मनोहर लाल खट्टर की जगह सैनी को चुनावी नेतृत्व सौंपा. कांग्रेस को भी जीतने वाले नेताओं पर दांव लगाना सीखना होगा. यदि हुड्डा को कुमारी शैलजा को अधिक भूमिका देने के लिए राजी किया जाता, तो दोनों नेता और उनके समर्थक मिलकर पार्टी को 10 साल बाद सत्ता में वापस ला सकते थे.