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2 चुनाव हारे, तीसरे में संन्यास का ऐलान, कभी लालू के ‘हनुमान’ रहे नीतीश कुमार कैसे बन गए बिहार के परमानेंट ’सुशासन बाबू’

नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने तक संघर्ष, रणनीति और अनुभव की मिसाल है, जिन्होंने बिहार में सत्ता और जनाधार दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

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Edited By: Kuldeep Sharma
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Courtesy: social media

पटना: नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में इतिहास रच दिया है. कभी लालू यादव के साथी और कभी विरोधी, आज वह 10वीं बार मुख्यमंत्री बन गए हैं. उनके राजनीतिक सफर में जीत, हार, गठबंधन और विरोध सभी का समावेश है. 

बिहार की जनता ने उन्हें हमेशा भरोसे और अनुभव के लिए चुना. उनकी यह जीत सिर्फ चुनाव का परिणाम नहीं बल्कि बिहार के सियासी परिदृश्य में उनके दबदबे और रणनीति का प्रतीक है.

नीतीश कुमार की शुरुआत और छात्र राजनीति

नीतीश कुमार का जन्म मार्च 1951 में बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बिजली विभाग में नौकरी मिली, लेकिन जेपी आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने राजनीति में कदम रखा. 1972 में कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने और यूनाइटेड स्टूडेंट्स फ्रंट से जुड़कर आंदोलन की शुरुआत की. 1977 में पहली बार चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 1985 में पत्नी ने चुनाव लड़ने के लिए 20,000 रुपये दिए, और नीतीश ने 22,000 वोटों से जीत हासिल की. यह उनके राजनीतिक करियर की पहली बड़ी सफलता थी.

लालू यादव का साथ और फिर विरोध

नीतीश कुमार ने 1990 में जनता दल के तहत चुनाव जीतकर लालू यादव के साथ काम किया. लालू के शासन में भ्रष्टाचार और जातिवाद के आरोप बढ़ने लगे, जिससे नीतीश का मोह भंग हुआ. 1995 में उन्होंने समता पार्टी बनाई और चुनावी मैदान में उतरकर लालू राज की पोल खोलने लगे. शुरुआती सफलता नहीं मिली, लेकिन यह कदम नीतीश की राजनीतिक पकड़ मजबूत करने में सहायक रहा.

मुख्यमंत्री पद और एनडीए की सफलता

2000 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पहली बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन सिर्फ सात दिन में सरकार गिर गई. 2005 में उन्होंने एनडीए के नेतृत्व में स्पष्ट बहुमत हासिल किया. जेडीयू और बीजेपी की संयुक्त सरकार ने जंगलराज को खत्म किया और कानून व्यवस्था व विकास के नए आयाम स्थापित किए. 2010 का चुनाव उनकी गवर्नेंस की सफलता का प्रमाण बना.

नरेंद्र मोदी के विरोध और गठबंधन की राजनीति

नीतीश कुमार ने 2013 में बीजेपी से दूरी बनाते हुए महागठबंधन का हिस्सा बने. 2014 और 2015 में राजनीतिक समीकरण बदलते रहे. बीजेपी के सहयोग और विरोध के बावजूद नीतीश ने सियासी संतुलन बनाए रखा. 2017 में फिर बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने और बिहार में सबसे लंबे समय तक और बार-बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया.

महागठबंधन और नौवीं शपथ

नीतीश ने 2022 में महागठबंधन का हिस्सा बनकर आठवीं बार मुख्यमंत्री पद संभाला. 2024 में एनडीए के सहयोग से नौवीं बार शपथ ली. इस बीच तेजस्वी यादव और आरजेडी के साथ गठबंधन और सत्ता संघर्ष ने उनके राजनीतिक कौशल को और मजबूत किया. नीतीश ने हर बार अपने अनुभव और रणनीति से विपक्षियों को पराजित किया है.

10वीं शपथ और बिहार की राजनीति में दबदबा

2025 में नीतीश कुमार की जीत ने बिहार की राजनीति में फिर से लहर पैदा कर दी. एनडीए के नेतृत्व में उनकी अगुवाई बिहार में पांच साल तक जारी रहेगी. यह जीत संघर्ष, अनुभव और रणनीति की कहानी कहती है. नीतीश ने बिहार में जनाधार और सत्ता दोनों में अपनी पकड़ को और मजबूत किया. उनका राजनीतिक सफर आज भी नए राजनीतिक अध्याय लिख रहा है.