बिहार की नई NDA सरकार में 'गृह कलेश', क्या पिघलेंगे नीतीश कुमार या बीजेपी को फिर देंगे झटका
बिहार में नई सरकार बनने के बाद गृह मंत्रालय के बंटवारे पर नीतीश कुमार और बीजेपी में सहमति नहीं बन पा रही है. बीजेपी इसे अपने नेता, खासकर सम्राट चौधरी को देना चाहती है, जबकि नीतीश इसे छोड़ने के मूड में नहीं दिखते.
पटना: बिहार में नई सरकार के गठन के बाद विभागों के बंटवारे पर खींचतान तेज हो गई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शपथ ले चुके हैं, स्पीकर पद पर भी लगभग सहमति बन चुकी है, लेकिन गृह मंत्रालय का मामला अब भी अटका हुआ है. बीजेपी चाहती है कि इस बार नीतीश कुमार गृह विभाग अपने पास न रखें और इसे पार्टी के किसी नेता को सौंप दें.
गौरतलब है कि 2005 से अब तक, जब भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहे, गृह विभाग हमेशा उनके पास ही रहा है. 2020 में जेडीयू के कम सीटें लाने के बावजूद भी उन्होंने गृह मंत्रालय अपने पास रखा था.
लेकिन मौजूदा चुनाव नतीजों ने समीकरण बदल दिए हैं. इस बार बीजेपी नीतीश से उदारता की उम्मीद कर रही है, खासकर तब जब पार्टी ने बिना बहस के उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन दिया.
डिप्टी सीएम में सम्राट चौधरी सीनियर
बीजेपी के दोनों डिप्टी सीएम में सम्राट चौधरी सीनियर माने जाते हैं और पार्टी चाहती है कि वे गृह मंत्रालय संभालें. हालांकि, इसे लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. प्रशांत किशोर ने चुनाव से पहले सम्राट चौधरी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे और उन्हें सरकार में शामिल न करने की सलाह दी थी. इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया है. ऐसे में अगर वे गृह मंत्री बनते हैं तो विपक्ष और नागरिक समाज की ओर से तीखी प्रतिक्रिया संभव है.
फायदे के साथ घाटे का भी सौदा है गृह विभाग!
गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास होने का एक फायदा यह भी रहा कि किसी भी कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर नीतीश खुद जिम्मेदारी लेते थे. लेकिन इसका नुकसान भी होता रहा है, क्योंकि हर घटना का सीधा निशाना उन पर ही साधा जाता था. बीजेपी नेताओं का तर्क है कि बदले राजनीतिक माहौल में यह विभाग पार्टी को सौंपा जाना चाहिए.
इसी मुद्दे पर दिल्ली में हुई अहम बैठक में गृह मंत्रालय पर सहमति नहीं बन सकी. तय हुआ कि अमित शाह पटना पहुंचकर नीतीश कुमार से अंतिम बातचीत करेंगे. वहीं, सम्राट चौधरी भी विभागों की सूची लेकर नीतीश कुमार से मिल चुके हैं. जेडीयू की ओर से ललन सिंह, संजय झा और विजय कुमार चौधरी भी विभाग बंटवारे पर अलग बैठक कर चुके हैं.
महाराष्ट्र में भी 2024 के चुनावों के बाद ऐसा ही विवाद देखने को मिला था, जहां एकनाथ शिंदे ने गृह मंत्रालय की मांग की थी, लेकिन बीजेपी ने यह विभाग अपने पास रखा था. अब बिहार में भी वही फॉर्मूला लागू करने की कोशिश हो रही है.
कुल मिलाकर, बिहार में नई सरकार का सबसे बड़ा पेच गृह मंत्रालय ही बन गया है. आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि नीतीश कुमार अपनी पुरानी परंपरा छोड़ते हैं या बीजेपी अपनी मांग पर अडिग रहती है.