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बिहार में शुरू हुआ 'मिशन दल-बदल', टिकट की तलाश में नेताओं की लॉयल्टी शिफ्ट; जानें किसने थामा किसका दामन

Bihar Election: बीते कुछ हफ्तों में कई नामी नेता पार्टी बदल चुके हैं, जिनमें पूर्व विधायक, मंत्री और वरिष्ठ नेता शामिल हैं. आइए देखें किसने किस पार्टी का साथ छोड़ा और किसका दामन थामा

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Edited By: Princy Sharma
Bihar Election 2025
Courtesy: Social Media

Bihar Election 2025: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 करीब आ रहा है, प्रदेश की राजनीति में जबरदस्त हलचल मची हुई है. हर दल में टिकट की जुगाड़ तेज हो गई है और जिन्हें अपनी पार्टी से टिकट मिलने की उम्मीद कम लग रही है, वो अब दूसरी पार्टी की राह पकड़ रहे हैं. नेताओं की निष्ठा अब विचारधारा से नहीं बल्कि टिकट और जीत की संभावना से जुड़ी दिख रही है.

अब बिहार की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं रह गई कि चुनाव से पहले नेता पार्टी बदल लें. आज जो नेता एक पार्टी के झंडे तले भाषण दे रहे हैं, कल वो किसी दूसरी पार्टी के मंच से वोट मांगते दिख सकते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है टिकट की गैर-गारंटी. जब किसी नेता को लगता है कि उनकी पार्टी से टिकट मिलना मुश्किल है, तो वो सीधे प्लान B यानी दूसरी पार्टी का दामन थाम लेते हैं.

कौन-कौन नेता बदल चुके हैं पार्टी?

बीते कुछ हफ्तों में कई नामी नेता पार्टी बदल चुके हैं, जिनमें पूर्व विधायक, मंत्री और वरिष्ठ नेता शामिल हैं. आइए देखें किसने किस पार्टी का साथ छोड़ा और किसका दामन थामा:

  • रामचंद्र सदा – लोजपा से जेडीयू में
  • डॉ. अच्युतानंद – लोजपा (रामविलास) से कांग्रेस
  • डॉ. रेणु कुशवाहा – लोजपा (रामविलास) से आरजेडी
  • विनोद कुमार सिंह – जेडीयू से कांग्रेस
  • डॉ. अशोक राम – कांग्रेस से जेडीयू
  • डॉ. रविंद्र चरण यादव – बीजेपी से कांग्रेस

क्यों छोड़नी पड़ी पुरानी पार्टी?

हर नेता के पास पार्टी छोड़ने की अपनी वजह रही और वो वजह है टिकट की अनिश्चितता डॉ. अच्युतानंद को शक था कि उन्हें महनार सीट से टिकट नहीं मिलेगा क्योंकि राम सिंह पहले से सक्रिय हैं, इसलिए उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली. डॉ. रेणु कुशवाहा तो पहले जेडीयू, फिर बीजेपी, फिर लोजपा में थीं, अब उम्मीद की नई किरण उन्हें राजद में दिख रही है. विनोद कुमार सिंह कांग्रेस से फुलपरास सीट से लड़ना चाहते हैं, जबकि पहले वे जेडीयू में थे. डॉ. अशोक राम, जो कांग्रेस से छह बार विधायक रह चुके हैं, अब जेडीयू में चले गए हैं. डॉ. रविंद्र चरण यादव, बीजेपी से नाराज होकर सीधे कांग्रेस में जा पहुंचे.

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का मानना है कि आज की राजनीति में विचारधारा पीछे और अवसरवाद आगे है. नेताओं को बस जीत का फार्मूला चाहिए. जिस पार्टी से टिकट की उम्मीद नहीं, वहां रुकने का कोई मतलब नहीं. उन्होंने अनुमान जताया कि इस बार करीब 50 से ज्यादा नेताओं के टिकट कट सकते हैं. ऐसे में 'पार्टी स्विचिंग' और तेज होगी.

आगे क्या होगा?

यह तो तय है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा, 'मिशन दल-बदल' और रफ्तार पकड़ेगा. सवाल अब यह नहीं है कि कौन किस पार्टी में गया, असली सवाल यह है क्या अब राजनीति सिर्फ टिकट और जीत की सेटिंग बनकर रह गई है?