टीनएज में ज्यादा अकेले समय बिताने से दिमाग पर पड़ता है भयानक असर, नई रिसर्च में हुए चौंकाने वाले खुलासे
किशोरावस्था में अधिक अकेले समय बिताना मस्तिष्क के कई हिस्सों में बदलाव ला सकता है. एक अध्ययन में यह देखा गया कि जो युवा सामाजिक रूप से अलग-थलग रहते हैं, उनके सेरेबेलम यानी ‘छोटी मस्तिष्क’ में निहित ताकत अधिक नाज़ुक होती है.
किशोरावस्था में हम अक्सर सुनते हैं कि थोड़ा सन्नाटा, थोड़ा अकेलापन भी जरूरी है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बहुत अधिक अकेलेपन से मस्तिष्क की संरचना और कार्य में गंभीर बदलाव हो सकते हैं. हाल ही में एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जिन्होंने सामाजिक अलगाव को प्राथमिकता दी, उनके मस्तिष्क में कुछ हिस्से शारीरिक और कार्यात्मक तौर पर बदल गए हैं.
यह बदलाव केवल 'सोशल हिस्सों' तक सीमित नहीं, बल्कि निर्णय लेने और दिन-प्रतिदिन व्यवहार को प्रभावित करने वाली नेटवर्क तक फैल सकते हैं.
सामाजिक अलगाव से मस्तिष्क संरचना में परिवर्तन
इस अध्ययन में लगभग 2,809 किशोरों (माध्यमिक आयु लगभग 12 वर्ष) का विश्लेषण किया गया, जिनके माता-पिता ने उनकी सामाजिक आदतों की जानकारी दी थी. उन्होंने यह पाया कि जो युवा अकेले रहने को प्राथमिकता देते हैं या सामाजिक गतिविधियों से पीछे हटते हैं, उनकी मस्तिष्क की परत (cortex) पतली पाई गई. विशेष रूप से इन्सुला, एंटिरियर सिंगुलेट और सुपीरियर टेम्पोरल जायरियों (limbic system से जुड़े हिस्सों) में यह पतलापन देखा गया.
सेरेबेलम की नाज़ुकता और नेटवर्क कनेक्टिविटी कमजोर
अकेले रहने वाले किशोरों में मस्तिष्क की नेटवर्क कनेक्टिविटी कमजोर पाई गई. विशेष तौर पर, उन्होंने पाया कि सामाजिक व्यवहार और निर्णय लेने से जुड़े सर्किट, जिन्हें 'सेरेबेलर नेटवर्क्स' कहा जाता है, अधिक नाजुक हो जाते हैं. सेरेबेलम, जो आमतौर पर संतुलन और गति नियंत्रण के लिए जाना जाता है, इस अध्ययन में यह संकेत देता है कि इसका सामाजिक और संज्ञानात्मक कल्याण में भी जोड़ हो सकता है.
मस्तिष्क नेटवर्क पर व्यापक असर
शोध में यह बात उभरी है कि ये परिवर्तन एक ही मस्तिष्क हिस्से तक सीमित नहीं हैं. संरचनात्मक बदलाव कई नेटवर्कों में देखे गए, जिसका मतलब है कि सामाजिक अलगाव का असर संज्ञानात्मक, भावनात्मक और व्यवहारिक प्रक्रियाओं पर व्यापक रूप से हो सकता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि ये व्यापक पैटर्न एक किशोर मस्तिष्क पर असर को बढ़ा सकते हैं, खासकर जब ये बदलाव समय के साथ बने रहते हैं.
अकेलापन सामान्य या खतरनाक?
शोधकर्ता यह साफ करते हैं कि थोड़ा अकेलापन और समय-समय पर चुप रहना सामान्य है और कई बार उपयोगी भी हो सकता है. लेकिन जब यह पैटर्न निरंतर और अति हो, तब यह मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. निरंतर सामाजिक अलगाव किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों जैसे अवसाद, चिंता या सामाजिक असामंजस्य की संभावना बढ़ा सकता है.
समय रहते हस्तक्षेप कितना महत्वपूर्ण
शोध यह दर्शाता है कि चिकित्सक और माता-पिता शुरुआत में सामाजिक अलगाव के संकेत पहचानें. यदि एक किशोर लगातार खुद को अलग कर रहा है, तो यह न केवल व्यवहार का मामला हो सकता है, बल्कि मस्तिष्क स्तर पर भी परिवर्तन हो रहे हों. शोध की अगली पारी के लिए यह उम्मीद है कि इन किशोरों को समय-समय पर स्कैन और फॉलो-अप किया जाएगा, ताकि देखा जा सके कि मस्तिष्क में यह बदलाव किस तरह विकसित होते हैं.
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