नई दिल्ली: विज्ञापन जगत के दिग्गज और रचनात्मकता के पर्याय, पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे. 24 अक्तूबर को 70 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली. चार दशकों से अधिक समय तक उन्होंने भारतीय विज्ञापन को नई पहचान दी. उनके बनाए विज्ञापनों ने लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं और सोच को गहराई से छुआ.
पीयूष पांडे के विज्ञापन सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते थे, बल्कि कहानियां कहते थे. कैडबरी का 'कुछ खास है', फेविकोल का 'मजबूत जोड़' और एशियन पेंट्स का 'हर घर कुछ कहता है'-ये सभी उनके रचनात्मक दृष्टिकोण की पहचान बने. उन्होंने भारतीय संस्कृति, भाषा और हास्य को विज्ञापन की आत्मा बनाया.
दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद पीयूष पांडे ने अपने करियर की शुरुआत एक चाय कंपनी में टी टेस्टर के रूप में की. 1982 में उन्होंने विज्ञापन एजेंसी ओगिल्वी में ग्राहक सेवा कार्यकारी के तौर पर कदम रखा.
अपनी सादगी, मौलिकता और भाषा पर गहरी पकड़ के बल पर वे धीरे-धीरे शीर्ष तक पहुंचे और कंपनी के मुख्य रचनात्मक अधिकारी बने.
जयपुर में जन्मे पीयूष ऐसे परिवार से थे जहां साहित्य सांसों में बसता था. उनके माता-पिता दोनों ही हिंदी साहित्य के शिक्षक थे. बचपन से ही शुद्ध हिंदी, कहानियां और संवादों का अभ्यास उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया. यही कारण था कि उनके विज्ञापनों में आम आदमी की भाषा और दिल की बात झलकती थी.
जब भारतीय विज्ञापन पश्चिमी प्रभावों में खोए थे, तब पीयूष ने आम जनमानस की भाषा को मंच दिया. उन्होंने भारत की सादगी, ग्रामीण जीवन और भावनाओं को विज्ञापन की रचनाओं में पिरोया. उनके अभियानों ने लोगों के दिलों में जगह बनाई 'कुछ खास है', 'मजबूत जोड़', 'हर घर कुछ कहता है' जैसे नारे आज भी याद किए जाते हैं.
पीयूष पांडे केवल विज्ञापनों तक सीमित नहीं रहे. उन्होंने शूजित सरकार की फिल्म 'मद्रास कैफे' में अभिनय किया और अपने भाई प्रसून पांडे के साथ फिल्म 'भोपाल एक्सप्रेस' की पटकथा लिखी. उनकी रचनात्मकता ने उन्हें सिनेमा की दुनिया में भी अलग पहचान दिलाई.
पीयूष पांडे ने साबित किया कि रचनात्मकता का सार जटिलता में नहीं, सादगी में है. उनके विज्ञापन भारत की खुशबू, बोलचाल और संवेदनाओं से भरपूर थे. उन्होंने दिखाया कि एक विज्ञापन भी समाज से जुड़ी भावनाओं को छू सकता है और बदलाव ला सकता है.
विज्ञापन जगत के महानायक पीयूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया. डीयू से एमए करने के बाद उन्होंने ओगिल्वी में करियर शुरू किया और भारतीय विज्ञापन को नया चेहरा दिया.