अंधेरा कायम रहेगा...इस शहर में अब 65 दिनों तक नहीं निकलेगा सूरज, जानें क्यों होता है ऐसा?

अलास्का के उत्कियाग्विक (पूर्व नाम बैरो) में इस वर्ष का अंतिम सूर्यास्त होते ही 65 दिन की ‘पोलर नाइट’ शुरू हो गई. इस अवधि में सूरज क्षितिज के पार नहीं उगता और शहर लगभग दो माह अंधेरे में रहता है.

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Sagar Bhardwaj

उत्तरी ध्रुव के बेहद करीब बसे अलास्का के उत्कियाग्विक शहर ने इस सप्ताह वर्ष का अंतिम सूर्यास्त देख लिया और अब यह लगभग 65 दिनों तक चलने वाली ‘पोलर नाइट’ में प्रवेश कर चुका है. यहां रहने वाले करीब 4,600 लोगों के लिए यह वह मौसम होता है जब सूरज पूरी तरह गायब हो जाता है और केवल हल्की सांझ तथा ऑरोरा बोरेलिस की चमक ही रोशनी का सहारा बनती है. यह प्राकृतिक घटना पृथ्वी के झुकाव के कारण हर वर्ष चरम सर्दियों में घटित होती है.

उत्कियाग्विक लगभग 483 किलोमीटर आर्कटिक सर्कल के उत्तर में स्थित है, जहां नवंबर से जनवरी तक सूरज क्षितिज के ऊपर नहीं आता. इस वर्ष अंतिम सूर्यास्त 18 नवंबर को दर्ज हुआ. अब शहर में रोशनी का एकमात्र स्रोत हल्का धुंधलका और आसमान में दिखने वाली उत्तरी रोशनी होगी, जो लंबी रातों में कुछ उजाला देती है.

लोगों को हो चुकी है इसकी आदत

‘पोलर नाइट’ के दौरान तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे चला जाता है. रोशनी की कमी लोगों की दिनचर्या और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है, हालांकि स्थानीय समुदाय इसके अभ्यस्त हैं. शहर में अगला सूर्योदय 22 जनवरी 2026 को होगा, जिससे धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगेंगे और लंबी सर्द रात पीछे छूटेगी.

फिर नहीं डूबता सूरज

सर्दियों के बाद वसंत आते-आते सूरज की वापसी शुरू होती है. फिर मई के मध्य से अगस्त की शुरुआत तक उत्कियाग्विक (Utqiagvik) में स्थिति उलट जाती है- यहां सूरज बिल्कुल नहीं डूबता और लगातार दिन रहता है. यह अवधि ‘मिडनाइट सन’ कहलाती है, जो इस शहर की जलवायु का दूसरा चरम है.

भारत में ऐसी स्थिति संभव नहीं

भारत के द्रास, लेह जैसे सबसे ठंडे स्थानों पर भी रोज सूर्योदय और सूर्यास्त होता है. देश ध्रुवों से काफी दूर है, इसलिए सूर्य का मार्ग हमेशा क्षितिज को पार करता है. यही कारण है कि भारत में ‘पोलर नाइट’ जैसी घटना संभव नहीं होती.

आर्कटिक के गहरे हिस्सों में पृथ्वी का झुकाव सूर्य को इतना नीचे धकेल देता है कि वह हफ्तों तक दिखाई नहीं देता. दक्षिणी ध्रुव पर यह प्रभाव और तीव्र है, जहां लगभग छह महीनों तक एक ही ‘रात’ रहती है. जब आर्कटिक में अंधेरा छाया रहता है, तब दक्षिणी ध्रुव लगातार दिन का अनुभव करता है.