POK में पाकिस्तान के खिलाफ जन आंदोलन शुरू, शहबाज सरकार के खिलाफ क्यों सड़कों पर उतरे लोग

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में हालात बिगड़ते जा रहे हैं. हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं और 'शटर डाउन' के साथ 'व्हील जाम' हड़ताल शुरू कर दी है. लोग शहबाज शरीफ सरकार से बुनियादी हक की मांग कर रहे हैं.

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Kuldeep Sharma

PoK protests: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर एक बार फिर बड़े जन आंदोलन का गवाह बन रहा है. लंबे समय से आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा झेल रहे स्थानीय लोग अब सड़कों पर हैं. अवामी एक्शन कमेटी (AAC) के नेतृत्व में शुरू हुआ यह विरोध प्रदर्शन न केवल पाकिस्तान सरकार को चुनौती दे रहा है, बल्कि यह संकेत भी दे रहा है कि जनता अब और चुप बैठने वाली नहीं है.

अवामी एक्शन कमेटी (AAC) ने सोमवार को क्षेत्रभर में 'शटर डाउन और व्हील जाम' आंदोलन का ऐलान किया है. यह विरोध अनिश्चितकाल तक चल सकता है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार और AAC के बीच बातचीत नाकाम होने के बाद यह आंदोलन तेज किया गया. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें दशकों से उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है और अब 'बस बहुत हो गया'.

इंटरनेट बंद और सुरक्षा सख्त

प्रदर्शन की गंभीरता को देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने सख्ती शुरू कर दी है. इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं ताकि लोग ज्यादा संख्या में एकजुट न हो सकें. साथ ही शहरों के प्रवेश और निकास पर सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए हैं. शनिवार को ही पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने बड़े पैमाने पर फ्लैग मार्च निकाला. इस कदम से साफ है कि इस बार सरकार आंदोलन को हल्के में लेने की गलती नहीं कर रही.

गिलगित-बाल्टिस्तान से जुड़ा असंतोष

PoK में यह असंतोष अचानक नहीं फूटा है. इससे पहले जून में गिलगित-बाल्टिस्तान में हजारों लोगों ने कराकोरम हाईवे जाम कर दिया था. यह वही हाईवे है जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिए बेहद अहम है. लोग सरकार की व्यापार नीति और जमीन-खनिजों पर कब्जे के प्रस्तावित कानून के खिलाफ थे. बार-बार बिजली कटौती और आर्थिक अनदेखी ने भी गुस्से को और भड़काया.

पाकिस्तान के लिए चेतावनी

विशेषज्ञों का मानना है कि यह विरोध महज एक स्थानीय आंदोलन नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के भीतर बढ़ते असंतोष की तस्वीर है. शहबाज शरीफ सरकार पहले ही आर्थिक संकट और विपक्षी दबाव से जूझ रही है. अब PoK का यह जन आंदोलन उसकी मुश्किलें और बढ़ा सकता है. सवाल यह है कि क्या सरकार बातचीत और सुधार के जरिए हालात काबू में लाएगी, या फिर सख्ती और बल प्रयोग से उन्हें दबाने की कोशिश करेगी.