पाकिस्तान में अब कोर्ट की जगह सत्ता ही 'सुप्रीम', संविधान संशोधन से नाराज यूएन, दी सख्त चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने पाकिस्तान के 26वें संविधान संशोधन पर गंभीर चिंता जताई है. उनके अनुसार नया संशोधन न्यायिक स्वतंत्रता, सैन्य जवाबदेही और कानून के शासन को कमजोर कर सकता है और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार सीमित होने की आशंका बढ़ा रहा है.
नई दिल्ली: पाकिस्तान में लोकतंत्र की गुणवत्ता को लेकर पहले ही दुनिया सवाल उठाती रही है, लेकिन हाल ही में किए गए 26वें संविधान संशोधन ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है. अब इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (UNHRC) ने आधिकारिक तौर पर चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि यह बदलाव पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था और कानून के शासन के लिए घातक साबित हो सकता है.
UNHRC प्रमुख की सख्त टिप्पणी
मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने प्रेस रिलीज जारी कर पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया कि इस संशोधन के प्रभाव न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि नया संवैधानिक ढांचा देश की अदालतों को कार्यपालिका के प्रभाव में ला सकता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद खतरनाक संकेत हैं.
तुर्क ने कहा कि यदि न्यायपालिका राजनीतिक प्रभाव में आ जाती है, तो न्याय और समानता का बुनियादी स्वरूप ही कमजोर पड़ जाएगा. उन्होंने आगाह किया कि न्यायाधीशों को राजनीतिक वर्चस्व के अधीन करना मानवाधिकारों के उल्लंघन की दिशा में सीधा कदम होगा.
26वें संविधान संशोधन पर सवाल क्यों?
पाकिस्तान सरकार ने 13 नवंबर को 26वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी, जिसके तहत फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट (FCC) बनाने का प्रस्ताव रखा गया. इस नए कोर्ट के गठन पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को सीमित करने की कोशिश हो सकती है.
संशोधन के बाद यह आशंका और गहरी हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को केवल सिविल और क्रिमिनल मामलों तक सीमित कर दिया जाएगा. इससे उन संवैधानिक मामलों पर निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाएगी जो लोकतांत्रिक ढांचे और मानवाधिकारों के लिए अहम हैं.
सैन्य जवाबदेही पर भी मंडराया खतरा
यूएन के अनुसार, यह संशोधन पाकिस्तान में पहले से ही कमजोर मौजूद सैन्य जवाबदेही पर और प्रहार कर सकता है. तुर्क ने चेतावनी दी कि यदि संवैधानिक व्यवस्था को फिर से सैन्य या राजनीतिक प्रभाव वाली दिशा में ले जाया गया, तो देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं का ढांचा और कमजोर होगा.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को ऐसे किसी भी कदम से बचना चाहिए, जो कानून के शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए खतरा पैदा करे.
लोकतंत्र और मानवाधिकारों के भविष्य पर सवाल
पाकिस्तान लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता, न्यायपालिका पर दबाव और सैन्य दखल से जूझता रहा है. ऐसे में यह संशोधन देश की लोकतांत्रिक यात्रा को और चुनौतीपूर्ण बना सकता है. संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया स्पष्ट करती है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बदलाव को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है.
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