XI-Trump Meeting: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग आने वाले सालों में डोनाल्ड ट्रंप को ताइवान मुद्दे पर अपने पाला में लाने की कोशिश करेंगे. चीन लंबे समय से चली आ रही अमेरिकी नीति को बदलने के लिए दबाव बनाने की तैयारी कर रहे हैं. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार शी का लक्ष्य ताइवान की स्वतंत्रता का विरोध करने वाला एक औपचारिक अमेरिकी बयान हासिल करना है. बीजिंग का मानना है कि यह बदलाव ताइपे को अलग-थलग कर सकता है और चीन की पकड़ को मजबूत कर सकता है.
शी ने 2012 में सत्ता संभालने के बाद से ताइवान के साथ पुनर्मिलन को चीन के राष्ट्रीय पुनरुत्थान के अपने दृष्टिकोण का एक केंद्रीय हिस्सा बताया है. साथ ही उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई बार इस बात का दावा किया है कि ताइवान का चीनी नियंत्रण में वापस आना 'अपरिहार्य' है और बाहरी ताकतें इसे रोक नहीं सकतीं.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन के दौरान कहा गया था कि वाशिंगटन ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता. लेकिन यह बीजिंग को पूरी तरह आश्वस्त भी नहीं करता है. शी अब अमेरिका की ओर से इस दिशा में कड़े शब्द चाहते हैं. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि हम यथास्थिति में एकतरफा बदलाव का विरोध करते हैं. चीन ताइवान जलडमरूमध्य में सबसे बड़ा खतरा है. शी का मानना है कि आर्थिक रियायतों के बदले ट्रंप यह बदलाव मान सकते हैं. पूर्व अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी इवान मेडेइरोस ने कहा कि वाशिंगटन-ताइपे में दरार बीजिंग के लिए ताइवान समस्या का बड़ा हल है. इस साल ट्रंप ने ताइवान को 400 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद रोक दी है. वहीं ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते को अमेरिका में ट्रांजिट स्टॉप से मना कर दिया. जिससे उनकी लैटिन अमेरिका यात्रा रद्द हो गई.
स्टिमसन सेंटर के यूं सुन ने कहा कि ताइवान पर कोई बदलाव रातोंरात नहीं होगा, चीन लगातार दबाव बनाएगा. इससे अमेरिकी प्रतिबद्धता पर ताइवान का भरोसा कमजोर करेगा. इस साल दक्षिण कोरिया में एशिया-प्रशांत शिखर सम्मेलन में ट्रंप-शी की मुलाकात हो सकती है. 2026 में दोनों देशों के बीच पारस्परिक यात्राएं भी संभव है. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. चीन हमेशा से 110 मील चौड़े ताइवान जलडमरूमध्य पर नियंत्रण चाहता है. जिसकी वजह से ताइवान पर सैन्य-आर्थिक दबाव बढ़ाया गया है.