संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की जुलाई 2025 की अध्यक्षता संभालते ही पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उछालने की कोशिश की है. न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार अहमद ने कश्मीर को लंबे समय से अनसुलझा मुद्दा बताते हुए सुरक्षा परिषद से इसके समाधान के लिए अपने प्रस्तावों को लागू करने की मांग की. उन्होंने दावा किया कि कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर तनाव का कारण बना हुआ है, जो क्षेत्रीय स्थिरता और मानवाधिकारों को प्रभावित कर रहा है.
पाकिस्तान को जुलाई 2025 के लिए UNSC की रोटेटिंग अध्यक्षता मिली है जो एक अस्थायी सदस्य के रूप में उसकी भूमिका का हिस्सा है. यह अध्यक्षता प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह देश को वैश्विक मंच पर अपने मुद्दों को उठाने का अवसर देती है. इस बार पाकिस्तान ने इस मंच का उपयोग कश्मीर को केंद्र में लाने के लिए किया है. असीम इफ्तिखार ने कहा, सुरक्षा परिषद खासकर इसके स्थायी सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे अपने प्रस्तावों को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाएं." उन्होंने कश्मीर को एक ऐसा मुद्दा बताया, जिसे और टाला नहीं जा सकता.
कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा
भारत ने हमेशा से कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा माना है और इसे भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत से हल करने पर जोर दिया है. भारत का स्पष्ट मत है कि इसमें किसी तीसरे पक्ष या अंतरराष्ट्रीय संगठन का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है. 1948 से लेकर अब तक UNSC में कश्मीर पर कई प्रस्ताव पारित हुए हैं, लेकिन इनका कोई व्यावहारिक समाधान नहीं निकला. भारत ने बार-बार कहा है कि ये प्रस्ताव ऐतिहासिक संदर्भों में देखे जाने चाहिए और वर्तमान परिस्थितियों में इनकी प्रासंगिकता सीमित है.
पाकिस्तान की पुरानी रणनीति
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने UNSC के मंच का उपयोग कश्मीर मुद्दे को उठाने के लिए किया है. पहले भी वह इस तरह की कोशिशें करता रहा है, लेकिन भारत की मजबूत कूटनीति ने इन प्रयासों को विफल किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह रणनीति न केवल कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने की कोशिश है, बल्कि आंतरिक और क्षेत्रीय स्तर पर अपनी छवि को मजबूत करने का प्रयास भी है.